चना के दार राजा : बैतल राम साहू

ददरिया

छत्तीसगढ के लोकप्रिय ददरिया से हम आपको छत्तीसगढी व हिन्‍दी में परिचय करा रहे है । पढिये सुनिये एवं आनंद लीजिये छत्तीसगढी लोकगीत का :-

बटकी म बासी अउ चुटकी म नून
मैं गावत हौं ददरिया तें कान देके सुन ।
चना के दार राजा चना के दार रानी
चना के दार गोंदली कडकत हे,
टूरा हे परबुधिया होटल म भजिया धडकत हे ।

बागे बगैचा दिखेल हरियर
मोटरवाला नई दिखे बदेहंव नरियर । वो चना के दार ....

तरी पतोई उपर कुरता
रहि रहि के छकाथे तोरेच सुरता । वो चना के दार ....

नवा सडकिया रेंगेला मैना
दू दिन के अवईया लगाए महीना । वो चना के दार ....

चांदी के मुंदरी किनारी कर ले वो
मैं रहिथौं नवापारा चिन्‍हारी कर ले । वो चना के दार .

कांदा ये कांदा केवंट कांदा ओ
ये ददरिया गवईया के नाम जादा । वो चना के दार ....

चना के दार राजा चना के दार रानी
चना के दार गोंदली कडकत हे,
टूरा हे परबुधिया होटल म भजिया धडकत हे ।

बटकी में बासी (पके चांवल को डुबोने से बने) और चुटकी में नमक लेके मैं ददरिया गा रहा हूं तुम कान लगाकर सुनो ! चना का दाल है राजा, चना का दाल है रानी, चना के दाल एवं प्याज से बना हुआ भजिया तला जा रहा है । इस भजिये को होटल में वह प्रेमी लडका ‘धडक’ रहा है (यहां ‘धडकत हे’ शव्द का प्रयोग हुआ है छत्तीसगढी में खाने के भाव में आनंद जब मिल जाता है तब ‘धडकना’ कहा जाता है, यानी मजे से खा रहा है) जो किसी दूसरे प्रेयसी के प्रेम में अपना सुध-बुध खो बैठा ‘परबुधिया’ है ।

बाग और बगीचे सब हरे हरे दिख रहे हैं पर मेरा मोटर वाला (किसी किसी जगह यहां दुरूग वाला या प्रेमी के परिचय स्वरूप शव्दों का प्रयोग किया जाता है) प्रिय नहीं दिख रहा है मैने उसके आने के लिए भगवान को मन्नत स्वरूप नारियल चढाने का वादा किया है ।

प्रेमिका अपने प्रेमी के मन में बसे स्वरूप व कपडों का वर्णन करती है कि शरीर के नीचे अंग में पतोई (गमछा जिसे धोती जैसा पहना जाता है) एवं उपर में कुरथा (छत्तीसगढ में कमीज को कुरथा कहा जाता है जो रंग बिरंगी रहता है) है । रूक-रूक कर तुम्हारी याद आती है मेरे सब्र का बांध टूटता है ।

नये सडक में मैंना चल रही है प्रिय दो दिन में आने वाले थे पर महीना हो गया तुम नहीं आये हो । यहां मैना वह स्वयं है जो प्रिय के आने के आश में बार बार सडकों का चक्कर लगा रही है पर सडक प्रिय के बिना सूना है ।

चांदी के छल्ले में लकीर खींचकर चिन्ह बना लो मैं नवापारा में रहता हूं मुझे पहचान लो । प्रेमी शहर में भजिया धडकते हुए किसी और सुन्‍दरी से इश्क लडाने का प्रयास करता है और उसे पहचान स्वरूप उपनी अंगूठी देता है ।

शकरकंद को छत्तीसगढ में केंवट कांदा कहा जाता है क्योंकि यहां नदी के किनारे कछार में केंवट लोग ही शकरकंद लगाते हैं । छत्तीसगढ में इसे उबाल कर एवं सब्जी बनाकर खाया जाता है । ददरिया जो गाता है उसका नाम शकरकंद के मिठास की तरह ही चहूं ओर व्याप्त रहती है । ददरिया गाने के इसी फन के कारण युवा प्रेमी के जहां तहां प्रेमिकाएं मिल जाती है और उसकी मूल प्रेमिका इसी कारण चिंतित रहती है कि मेरा प्रिय परबुधिया है ।

वाद संवाद के वाचिक परंपरा में आबद्ध ददरिया व्यक्ति को प्रेम के रस में सराबोर कर झूमने और गाने को बार बार मजबूर करती है बगिया से उठती कोयल की कूक जैसी वाणी ददरिया में जान भरती है और सुनने वाला छत्तीसगढ के ग्रामीण परिवेश में खो सा जाता है ।

बैतल राम साहू के स्वर में संगीत के साथ इसका मजा लीजिये (कापीराईट के.के.कैसेट, रायपुर फोन न. 0771 2228898)
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Bataki ma Basi.mp3

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...