शव्दो आधारित विज्ञापन : गूगल कंटेंट और लिंक एड सेंस (Google Ad 1)

कंटेंट एड मूलत: शव्‍द आधारित विज्ञापन है जो समय समय पर चित्र एवं शव्‍दों का विकल्‍प चुननेपर चित्र रूप में भी प्रस्‍तुत होते हैं । कंटेंट एड को क्लिक करने पर क्लिकर सीधे विज्ञापनदाता के वेबसाइट या पेज तक पहुंचता है । यदि आप इसमें सिर्फ शव्‍दों का विकल्‍प चुनना चाहते हैं तो ऐसा विकल्‍प भी वहां मौजूद है । मेरा मानना है कि यहां सिर्फ शव्‍द आधारित विकल्‍प ही चुने क्‍योंकि चित्र आधारित विकल्‍प के लिए गूगल बाबा नें विशेष रूप से रिफरल एवं वीडिओ एड बनाया है जिसके संबंध में हम बाद में चर्चा करेंगें । इसके अतिरिक्‍त कंटेंट एड में पांच विज्ञापन तक के विकल्‍प मौजूद हैं यानी क्लिक होने की संभावनाओं की संख्‍या में वृद्धि । यहां अर्न मनी पर क्लिक के द्वारा बूंद बूद से आपका घडा भरना आरंभ होगा ।

लिंक एड गूगल सर्च के विभिन्‍न खोज परिणामों तक पहुचाता है जहां एक विंडो में एक विषय के कई वेब साईट या पेज की जानकारी दी गई होती है जिसे क्लिक करने पर विज्ञापन प्रदाता के वांछित विषय तक पहुचा जाता है ।

इन दोनों एड के लिए जो महत्‍वपूर्ण सूत्र है वह है ‘चैनल’ । अपने द्वारा इच्छित विषय के विज्ञापन प्राप्‍त करने के लिए चैनल का चयन करना पडता है । चैनल के निर्माण के लिए गूगल एड सेंस में विकल्‍प मौजूद है आप मैनेज चैनल से चैनल मैनेज कर सकते हैं एवं नये प्रभावी चैनल का निर्माण भी कर सकते हैं । चैनल छोटे शव्‍दों में मूल विषय हो तो ज्‍यादा अच्‍छा या फिर छोटे शव्‍द समूह जैसे आनलाईल पैसा कमायें, पार्ट टाईम जाब का चैनल बना सकते हैं । अभी गूगल के पास हिन्‍दी के विज्ञापन नहीं के बराबर है इस कारण हमें चैनल अंग्रेजी में ही बनाने पड रहे हैं । हिन्‍दी में मैनें छत्‍तीसगढ का चैनल बनाया है पर उससे संबंधित विज्ञापन नहीं होने के कारण छत्‍तीसगढ शव्‍द से संबंधित विज्ञापन कम ही आते हैं अत: अपने विवेककानुसार सहीं शव्‍दों का चैनल निर्माण करें । एक विज्ञापन में गूगल बाबा 5 चैनलों तक चयन विकल्‍प प्रदान करता है फिर इन्‍ही चैनलों से संबंधित गूगल में उपलब्‍ध विज्ञापन आपके ब्‍लाग पर प्रदर्शित होगा । यहां यह स्‍पष्‍ट करना आवश्‍यक है कि आप अपने चैनल का चयन अपने ब्‍लाग से संबंधित विषय का करें तब पाठक को उस विज्ञापन में रूचि जगेगी । दूसरा चयन का आधार सर्च में आपके ब्‍लाग की विषय वस्‍तु । इसके लिए सबसे कारगर उपाय है अपने हिट कांउटर से यह पता लगावें कि सर्च इंजन के द्वारा आपके ब्‍लाग में पाठक किस शव्‍द को खोजते ज्‍यादा आते है, वही शव्‍द आपका अर्निंग चैनल है ।

विज्ञापन लगाने का अपना अपना नजरिया है, आपका विज्ञापन वही देखेगा या क्लिक करेगा जो आपका पाठक है या सर्च के द्वारा आपके ब्‍लाग तक आता है । आपके पाठक कौन हैं एवं सर्च के द्वारा किस प्रकार के पाठक आपके ब्‍लाग तक आते हैं इससे आप अपने ब्‍लाग की विषय सामाग्री तय कर सकते हैं एवं इसी से संबंधित विज्ञापन भी । यह आपको स्‍वयं समझना पडेगा, आपके आफ्रीका में हिन्‍दी पाठक हैं और आप आफ्रीका को टारगेट करते हुए आफ्रीकन मेट्रोमोनीयल एड अपने ब्‍लाग में लगायेंगें तो भी आपका विज्ञापन क्लिक नहीं होगा वहां इंडियन मेट्रोमोनियल एड ही क्लिक होगा ।

क्रमश:

यह समस्‍त जानकारी गूगल एड सेंस की सामान्‍य जानकारी है । मुझे इसमें कोई महारत हासिल नहीं है ना ही मुझे कोई उल्‍लेखनीय कमाई एड सेंसों से हो रही है किन्‍तु पाठकों के व्‍यक्तिगत मेलों का जवाब न देकर मैं इसे पोस्‍ट रूप में प्रस्‍तुत कर रहा हूं । यदि आप गलतियों को टिप्‍पणी के द्वारा बतलायेंगें तो पाठकों को भी सुविधा होगी ।

संजीव तिवारी

का तै मोला मोहनी डार दिये गोंदा फूल: छत्ती सगढ में फाग (Fagun on Chhattisgarh)

छत्‍तीसगढ में फाग 2

संजीव तिवारी

छत्तीसगढ में धडतके नगाडे और मांदर के थापों की बीच उल्लास का नाम है फाग । भारत के अलग-अलग हिस्सों में फाग अपने अनुपम उत्साह के साथ गाया जाता है जिसमें छत्तीसगढ का फाग निराला है । फाग का गायन बसंत पंचमी से लेकर होली तक गांव के गुडी चौपाल या किसी सार्वजनिक स्थान पर होता है जिसमें पुरूष ही फाग गायन करते हैं ।

कृषि प्रधान इस प्रदेश में फागुन में खेती का संपूर्ण कार्य समाप्‍त हो जाता है, परसा (टेसू) के गहरे लाल फूलों के खिलने के साथ ही किसान मस्त हो जाते हैं, बाग-बगीचे में आमों में बौर के आने से कोयली कूकने लगती है, पारंपरिक गीतों में फाग की स्वर लहरियां गूंजने लगती हैं । गीतों में प्रथम पूज्य गजानन का आवाहन कर फाग मुखरित होता है –

गनपति को मनाउं, गनपति को मनाउं
प्रथम चरण गणपति को ।

समूचे भारत में कृष्ण को होली का आदर्श माना जाता है, फाग का सृजन राधा कृष्ण प्रेम के गीतों से हुआ है । छत्तीसगढ में भी फाग गान की विषय वस्तु राधा कृष्ण का प्रेम प्रसंग ही होता है । गणपति वंदना के बाद कृष्ण को फाग गाने एवं होरी खेलने हेतु आमंत्रित किया जाता है –


दे दे बुलौवा राधे को गोरी ओ,
दे दे बुलौवा राधे को
कुंजन में होरी होय,
गोरी ओ दे दे बुलौवा राधे को ।

कृष्ण के शरारती प्रसंगों को गीतों में पिरो कर छत्तीसगढ का फाग जब नगाडे से सुर मिलाता है तो बाल-युवा-वृद्ध जोश के साथ होरी है ....होरी है.... कहते हुए नाचने लगते हैं, रंगों की बरसात शुरू हो जाती है -

छोटे से श्याम कन्हैया हो,
छोटे से श्याम कन्हैया मुख मुरली बजाए,
मुख मुरली बजाए छोटे से श्याम कन्हैया !
छोटे मोटे रूखवा कदंब के, डारा लहसे जाए डारा लहसे जाए
ता उपर चढके कन्हैंया, मुख मुरली बजाए मुख मुरली बजाए
छोटे से श्याम कन्हैया ।
सांकूर खोर गोकुल के, राधा पनिया जाए राधा पनिया जाए
बीचे में मिलगे कन्हैया, गले लियो लपटाए तन लियो लपटाए
छोटे से श्याम कन्हैया ।

आजादी की लडाई, गांधी जी के सत्‍याग्रह, आल्‍हा उदल की लडाई के साथ समसामयिक विषयों का भी समावेश समयानुसार फाग में होता है –


अरे खाडा पखाडो दू दल में, आल्हा खाडा पखाडो
दू दल में
उदल के रचे रे बिहाव, आल्हा खाडा पखाडो
दू दल में ।


रेलगाडी मजा उडा ले टेसन में
तोर धुआं उडय रे अकास,
रेलगाडी मजा उडा ले टेसन में ।

बीच बीच में अरे रे रे ..... सुन ले मोर कबीर से शुरु कबीर के दोहों को उच्च स्वर में गाया जाता है एवं पद के अंतिम शव्दों को दोंहों में शामिल कर फाग अपने तीव्र उन्माद में फिर से आ जाता है । कभी कभी राधा-कृष्ण के रास प्रसंग तो कभी प्रेम छंद भी कबीर के रूप में गाए जाते हैं । प्रेम में चुहलबाजी है

का तै मोला मोहनी डार दिये गोंदा फूल
का तै मोला मोहनी डार दिये ना
रूपे के रूखवा म चढि गये तैं हा
मन के मोर मदरस ला झार दिये गोंदा फूल
का तै मोला मोहनी डार दिये ना ।

होली की रात, होली जलने पर गांव के होलवार में होले डांड तक यानी होलिका की सीमा तक, अश्लील फाग भी गाया जाता है यह अश्लील गीत होलिका के प्रति विरोध का प्रतीक है, होलिका को गाली देने के लिए सामूहिक स्वर में नारे लगाए जाते हैं इसीलिए यहां किसी को गंदी गंदी गाली देने पर ‘होले पढत हस’ कहा जाता है । होलिका के जलने से लेकर सुबह तक ये गीत चलते हैं फिर होलिका के राख को एक दूसरे पर उडाते हुए फाग गाते हुए गांव तक आते हैं गांव में आते ही इसकी अश्‍लीलता समाप्त हो जाती है । ‘गोरी ओ तोर बिछौना पैरा के’ साथ
कुछ चुहलपन साथ रहती है –

मेछा वाले रे जवान, पागा वाला रे जवान
मारत हे अंखियां कच ले बान
कहंवा ले लानबोन लुगरा पोलका,
कहंवा ले लाबो पान
रईपुर ले लानबोन लुगरा पोलका,
दुरुग ले पान
कहंवा ले लानबोन किसबिन,
कहंवा के रे जवान कहंवा के जवान
मारत हे अंखियां कच ले बान ।

छत्तीसगढ में फाग के लिए किसबिन यानी नर्तकी को बुलाया जाता था पूर्व में फागुन में नाच गान करने वाली किसबिनो का पूरा का पूरा मुहल्ला किसी किसी गांव में होता था जहां से किसबिन को निश्चित पारिश्रमिक पर लगा कर फाग वाले दिनो के लिए लाया जाता था । किसबिने मांदर की थाप पर नृत्य पेश करती थी और जवान उस पर रंग गुलाल उडाते थे । कालांतर में यह प्रथा कुछ कुत्सित रूप में सामने आने लगी थी अत: अब किसबिन नचाने की प्रथा लगभग समाप्त हो गई है ।

आधुनिक प्रयोगों में पुरूषों के साथ ही महिलाओं के द्वारा भी फाग गाया जा रहा है । सीडी-कैसेटों के इस दौर में फाग के ढेरों गीत बसंत पंचमी के साथ ही छत्‍तीसगढ में गूंजने लगा है मेरा मन भौंरा भी रून झुन नाचता गाता हुआ फाग में मदमस्त है ।

आलेख एवं प्रस्तुति :-
संजीव तिवारी

(यह आलेख दैनिक हरिभूमि के 22 मार्च होली विशेषांक में प्रकाशित हुआ है )

दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग 1


दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग

संजीव तिवारी

छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है ।

ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है -

गनपति को मनाव, गनपति को मनाव
प्रथम चरण गनपित को ।
काखर पुत गनपित ये, काखर हनुमान
काखर पुत भैरव हैं, काखर भगवान
प्रथम चरण गनपित को ।
गौरी पुत गनपित है,
अंजनी के हनुमान
देवी सतालिका पुत भैरव हैं,
कौसिल्या के हैं राम
प्रथम चरण गनपित को ।

भारत के कोने कोने में फागुन में फाग गीत गाये जाते हैं एवं सभी स्थानों के फाग गीतों की विषय वस्तु राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंगों ही होते हैं । जीवन में प्रेम एवं उल्लास का संचार भगवान श्री कृष्ण, अपने चौंसठ कलाओं सहित कृष्णावतार रूप में ही प्रस्तुत करते हैं । विष्णु के अन्य सभी अवतार चौंसठ कलाओं से परिपूर्ण नहीं थे । आवश्यकतानुसार राम नें भी चौदह कलाओं के साथ इस घरती पर जनम लिया तो क्यू न हो फाग के नायक कृष्ण । यहां के फाग गीतों में नायक कृष्ण मित्रों के साथ कुंजन में होरी खेल रहे है, राधा के बिना होली अधूरी है, जाओ मित्र उसे बुलाओ –

दे दे बुलउवा राधे को,
सुरू से दे दे बुलउवा राधे को
राधे बिन होरी न होय,
राधे बिन होरी न होय
दे दे बुलउवा राधे को ।

फाग अपने यौवन में है नगाडा धडक रहा है, राधा के आते ही उत्साह चौगुनी हो जाती है । राधा किसन होरी खेलने लगते हैं, गायक के साथ मस्‍ती में डूबे वादक दो जोडी, तीन जोडी फिर दस जोडी नगाडे को थाप देता है – बजे नगाडा दस जोडी, राधा किसन खेले होरी ।

छत्तीसगढ में फागुन के लगते ही किसानों के घरों में तेलई चढ जाता है अईरसा, देहरौरी व भजिया नित नये पकवान, बनने लगते हैं । युवा लडके राधा किसन के फाग गीतों में अपनी नवयौवना प्रेमिका को संदेश देते हैं तो साथ में गा रहे बुजुर्ग फागुन के यौवन उर्जा से मतवारी हुई डोकरी को उढरिया भगा ले जाने का स्वप्न सजाते हैं -

तोला खवाहूं गुल-गुल भजिया,
तोला खवाहूं गुल-गुल भजिया
फागुन के रे तिहार, तोला खवाहूं गुल-गुल भजिया ।
कउने हा मारे नजरिया, कोने सीटी रे बजाए
कउने भगा गे उढरिया, फागुन के रे तिहार .........
टूरी हा मारे नजरिया, टूरा सीटी रे बजाए
डोकरी भगा गे उढरिया, फागुन के रे तिहार .........

छत्तीसगढ में लडकियां विवाह के बाद पहली होली अपने माता पिता के गांव में ही मनाती है एवं होली के बाद अपने पति के गांव में जाती है इसके कारण होली के समय गांव में नवविवाहित युवतियों की भीड रहती है । इनमें से कुछ विवाह के बाद पति से अनबन के चलते अपने माता पिता के गांव में बहुत दिनों से रह रही होती हैं । विवाहित युवा लडकी किसी अन्य लडके से प्रेम करती है जिसके साथ रहना चाहती है पर गांव के लडके उसकी अल्हडता व चंचलता से जलते है वे उस लडकी की दादी से कहते हैं -

ये टूरी बडा इतरावथे रे,
ये टूरी बडा मेछरावथे ना
येसो गवन येला दे देते बूढी दाई,
ये टूरी बडा मेछरावथे ना ।
क‍हंवा हे मईके कहवां ससुरार हे
कहंवा ये जाही भगा के ओ बूढी दाई
ये टूरी बडा मेछरावथे ना ।
रईपुर हे मईके दुरूगा ससुरार हे
भेलई ये जाही बना के ओ बूढी दाई
ये टूरी बडा मेछरावथे ना ।

फाग में प्रेम प्रसंग के साथ प्रेमिका को पाने के लिए शौर्य प्रदर्शन के प्रतीक रूप में जन जन के आदर्श आल्हा-उदल भी उतर आते हैं । खांडा पखाडते हुए आल्हा, उदल की प्रमिका सोनवा को लाने निकलता है, मस्ती से झूमते युवक गाते हैं -

उदल बांधे हथियार, उदल बांधे तलवार
एक रानी सोनवा के कारन ।
काखर डेरा मधुबन में,
काखर कदली कछार
काखर डेरा मईहर में, उदल बांधे तलवार .....
आल्हा के डेरा मधुबन में, उदल कदली कछार
सोनवा के डेरा मईहर में, उदल बांधे तलवार .....

प्रेम रस से सराबोर इस लोकगीत में बाल-युवा-वृद्ध सब पर मादकता छा जाती है पर उन्हें अपने प्रदेश व देश पर नाज है । राष्ट्रपिता के अवदान स्वरूप प्राप्त आजादी का मतलब उन्हें मालूम है, अंग्रेजों के छक्के छुडाने वाले गांधी बबा भी फाग में समाते हैं –

गांधी बबा झंडा गढा दिये भारत में
अगरेज ला चना रे चबाय, अंगरेज के मजा ला बताए
गांधी बबा झंडा गढा दिये भारत में ।
गडवईया गडवईया, गडवईया जवाहर लाल
गांधी बबा झंडा गढा दिये भारत में ।

वाचिक परम्परा में सर्वत्र छाये इस लोकगीत में समय काल व परिस्थिति के अनुसार तत्कालीन विचार व घटनायें भी समाती रही हैं । चीन के आक्रमण के समय गांवों में गाये जाने वाले एक फाग गीत हमें पोटिया गांव के देवजी राम साहू से सस्वर सुनने को मिला आप भी देखें –

भारत के रे जवान, भारत के रे जवान
रक्षा करव रे हमर देस के ।
हमर देसे ला कहिथें सोनेकर चिरिया
चीनी नियत लगाए, चीनी नियत लगाए
मुह फारे देखे पाकिस्तान ह, येला गोली ले उडाव
येला गोली ले उडाव, नई रे ठिकाना हमर देश के ।
भारत के रे जवान, भारत के रे जवान .....

फाग गीतों में आनंद रस घोलने का काम आलाप एवं कबीर से होता है । आलाप फाग शुरू करने के पहले उच्च स्वर में विषय वस्तु से संबंधित छोटे छंद या पदों के रूप में किसी एक व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है यथा –

लाली उडय चुनरिया गोरी, लाली लाली बाती
रंग तो मैं हर लगाहूं रंगरेली, जाबे केती केतीहो .......

एवं प्राय: उसी के द्वारा उस गीत को उठाया, अर्थात शुरू किया जाता है ।
सरररा.... रे भाई सुनले मोर कबीर ......... के साथ चढाव में बजते मादर में कुछ पलो के लिए खामोशी छा जाती है गायक-वादक के साथ ही श्रोताओं का ध्यान कबीर पढने वाले पर केन्द्रित हो जाती है । वह एक दो लाईन का पद सुरीले व तीव्र स्वर में गाता है । यह कबीर या साखी फाग के बीच में फाग के उत्साह को बढाने के लिए किसी एक व्‍यक्ति के द्वारा गाया जाता है एवं बाकी लोग पद के अंतिम शव्‍दों को दुहराते हुए साथ देते हैं । इसके साथ ही कबीर के दोहे या अन्य प्रचलित दोहे, छंद की समाप्ति के बाद पढे जाते है पुन: वही फाग अपने पूरे उर्जा के साथ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुच जाता है । उतार चढाव के बीच प्रचलित कबीर कुछ ऐसे प्रस्‍तुत होते हैं –

बिन आदर के पाहुना, बिन आदर घर जाए कि यारों बिन आदर घर जाए ।
मुहु मुरेर के पानी देवय, अउ कुकुर बरोबर खाय कि यारों कुकुर बरोबर खाय ।।

आधा रोटी डेढ बरी, सब संतन मिल खाय, कि यारों सब संतन मिल खाय ।
आधा रात को पेट पिरावय, त कोलकी डहर जाए कि यारों कोलकी डहर जाए ।।

ललमुही टूरी बजार में बईठे, हरियर फीता गुथाय कि यारों हरियर फीता गुथाय ।
वो ललमुही टूरी ला देख के, भईया सबके मुह पंछाय कि यारों सबके मुह पंछाय ।।

पातर पान बंम्भूर के , केरा पान दलगीर कि यारों केरा पान दलगीर ।
पातर मुंह के छोकरी, बात करे गंभीर कि यारों बात करे गंभीर ।।

बसंत पंचमी से धडके नगाडे और उडते गुलालों की रम्य छटा होली के दिन अपने पूरे उन्माद में होता है । गांव के चौक-चौपाल में गुंजित फाग होली के दिन सुबह से देर शाम तक अनवरत चलता है । रंग भरी पिचकारियों से बरसते रंगों एवं उडते गुलाल में मदमस्त छत्तीसगढ अपने फागुन महराज को अगले वर्ष फिर से आने की न्यौता देता है –

अब के गये ले कब अईहव हो, अब के गये ले कब अईहव हो
फागुन महराज, फागुन महराज,
अब के गये ले कब अईहव ।
कामे मनाबो हरेली, कामे तीजा रे तिहार
कामे मनाबो दसेला, कब उडे रे गुलाल । अब के गये ले कब अईहव हो .....
सावन मनाबो हरेली, भदो तीजा रे तिहार
क्वांर मनाबो दसेला, फागुन उडे रे गुलाल । अब के गये ले कब अईहव हो .....

छत्तीसगढ का फाग इतना कर्णप्रिय है कि इसे बार बार सुनने को मन करता है । आजकल पारंपरिक फाग गीतों सहित नये प्रयोगों के गीतों के ढेरों कैसेट-सीडी बाजार में उपलब्ध हैं जिससे हमारा यह लोकगीत समृद्ध हुआ है । पूर्व प्रकाशनों में फील्ड सांग्स आफ छत्तीसगढ व इसका हिन्दी अनुवाद छत्तीसगढी लोकगीतों का अध्ययन : श्यामा प्रसाद दुबे, लोक गाथा : सीताराम नायक, छत्तीसगढ के लोकगीत : दानेश्वर शर्मा व फोक सांग्स आफ छत्तीसगढ : वेरियर एल्विन सहित छत्तीसगढी लघु पत्रिकाओं में झांपी : जमुना प्रसाद कसार, लोकाक्षर : नंदकुमार तिवारी, छत्तीसगढी : मुक्तिदूत आदि एवं छत्तीसगढ के समाचार पत्रों के फीचर पृष्टों में पारंपरिक छत्तीसगढी फाग संग्रहित हैं किन्तु जिस तरह से ददरिया व जस गीतों पर कार्य हुआ है वैसा कार्य फाग पर अभी भी नहीं हो पाया है इसके संकलन व संर्वधन एवं संरक्षण की आवश्यकता है ।

आलेख एवं प्रस्तुति :संजीव तिवारी
(यह आलेख साहित्तिक व सांस्कृतिक इतवारी पत्रिका के 16 मार्च 2008 के अंक में प्रकाशित हुआ है)

आनलाईन कमाई : ब्लागर्स का स्वप्न

ब्लागर्स को अपने ब्लाग लेखन के द्वारा कमाई करने के लिए अंतरजाल में कई सेवा प्रदाता बेव साईट हैं जो प्रति क्लिक के अनुसार या अन्य प्रक्रियाओं के द्वारा ब्लागर्स को राशि मुहैया कराते है । हम सब की चाहत है कि ब्लागिंग से कुछ आय हो स्वांत: सुखाय लेखनी के बासी में चटनी तो होनी ही चाहिए ।

हम यहां ऐसे सेवा प्रदाताओं के लिंक प्रदान कर रहे हैं । इनमें से ज्यादातर सेवा प्रदाता अंग्रेजी भाषा के ब्लाग के लिए ही आय का जरिया प्रदान करते हैं । हां हमारे गूगल बाबा सब पर मेहरबान हैं इसलिये उनका दामन पकडे रहने में ही भलाई (कमाई) है । गूगल एड सेंस के संबंध में हम भविष्य में कुछ जानकारी देने का प्रयास करेंगे । अभी आप इन एड सेंसों का भी भ्रमण करें मन हो तो खाता खोलें । मेरा अभी तक का अनुभव रहा है कि गूगल के अतिरिक्त अन्य सेवा प्रदाताओं से आय की संभावना अभी क्षीण है । कुछ सेवा प्रदाता प्रोजेक्ट के संबंध में लिखने पर एवं साइन इन करने पर 25 डालर तक का भुगतान करते हैं पर हमें इसका अनुभव नहीं है । पिछले दिनों श्री रवि रतलामी जी के रायपुर प्रवास में हम उनसे इस संबंध में चर्चा किये थे तो उन्होंनें बतलाया था कि यह संभव है पर अंग्रेजी भाषा के ब्लागों पर ही ।

प्रस्तुत है , मुख्य सेवा प्रदाताओं के हेडर फोटो के साथ लिंक :-

गूगल एड सेंस : इसके संबंध में आप सभी को बेहतर जानकारी है । भविष्य में हम कुछ और जानकारी आपको गूगल एड सेंस के संबंध में प्रस्तुत करेंगें

प्रोजेक्ट पे डे : लिखने पढने के शौकीनों के लिए पर अंग्रेजी वालों के लिए



ब्लागीटिव : देंखें कुछ बात बन जाय तो ।



द न्यूज रूम : वीडियो से कमाई की सोंच रहे हैं तो यहां प्रयास करें ।



स्पांसर्ड रिव्यू : स्पांसर यहां इंतजार कर रहे हैं आपका ।



स्मार्टी : स्मार्ट ब्लागर्स पधारे यहां ।



रिव्यू मी : रिव्यू करें विज्ञापन चिपकायें ।



लिंक वर्थ : लिंक विज्ञापनों का खजाना ।


लाउड लांच : लिंक व रिफरल एड ।




माई लॉट : यहीं है बडा लाट, कौन खरीददा पढता है आपका ब्लाग ।



ग्लोबल टेस्ट मार्केट : ग्लोबल परचेसर आते हैं आपके ब्लाग पर तो यहां पधारें ।



सीओ सर्वे : सर्वे करने की सोंच रहे हैं तो इसे भी पढ लें, शायद काम बन जाये ।



कमीशन जंक्शन : विज्ञापन से अच्छा कमीशन प्राप्त करना चाहते हैं ।


क्लिक सेंस : गूगल के सेंस जैसा क्लिक सेंस ।



कैश क्रैट : लिंक व रिफरल एड के लिए इसे भी देखें ।



ब्लाग्सवरर्टाइज : एक अच्छा सेवा प्रदाता विज्ञापन से कमाओ डालर ।


आक्शन एड : यदि क्रेडिट कार्ड यूजर ज्यादा पढते हैं आपको तो इसे चुनें ।



विजिगेट बक्स : बडे लोगों की बडी बातें, प्रयोग कर के देखें ।



चिटिका : चटका लगाओ पैसा कमाओ ।



अमेजन : विश्व का सबसे बडा शापिंग माल, इसके विज्ञापन से कमाओ सेंट बूंद बूद से भर लो घडा ।

अंतरजाल में उन्मुक्‍त भ्रमण रिमोट निक डाटाकार्ड : जेट माई 39 बीएसएनएल

अंतरजाल में भ्रमण हेतु बीएसएनएल नें जेट के साथ हाथ मिलाया है और हमारे जैसे घुमंतु के लिए लगभग अच्छी स्पीड का बेतार ईवीडीओ व निक कार्ड डाटाकार्ड को बाजार में उतारा है ।

छत्तीसगढ में निक कार्ड विक्रय व प्रयोग हेतु पिछले माह से प्रस्तुत हुआ है । ये बेतार निक डाटाकार्ड : जेट माई 39 लेपटाप कम्प्यूटर में ही चलता है, 240 किबाप्रस की क्षमता से संदेस को लाने ले जाने वाले ईवीडीओ कार्ड के साथ छत्तीसगढ में 140 किबाप्रस क्षमता वाला निक कार्ड सामान्यतया ज्यादा उपयोग में लाया जा रहा है । आने वाले दो तीन महीने में जब बीएसएनएल अपने मौजूदा टावरों की क्षमता में वृद्धि कर लेगी तब ईवीडीओ को आधिकारिक रूप से लांच किया जा सकेगा एवं इसके बाद निक कार्ड से काफी अच्छी स्पीड की उम्मीद की जा सकती है ।

मैं अभी पिछले पंद्रह दिन से निक डाटाकार्ड को उपयोग कर रहा हूं एवं इस बीच आरंभ में लगभग पांच पोस्ट अपलोड कर चुका हूं साथ ही मित्रों के एवं अन्य विधा व विषयों के लगभग पंद्रह - बीस पोस्ट अपलोड इसी डाटा कार्ड के सहारे कर चुका हूं ।

यदि आप इस डाटा कार्ड को लेना चाहते हैं तो यह बीएसएनएल द्वारा रू. 2800 के विक्रय मूल्य पर दिया जा रहा है एवं रू. 250 प्रति माह के किराये पर उपलब्ध है जिसमें अनलिमिटेड सर्फिंग की सुविधा भी है । यदि आप अभी
इसे क्रय नहीं करना चाहते तो रू. 50 के अतिरिक्त किराये पर भी उपलब्ध है ।

अभी इसे सिर्फ एक शहर में ही उपयोग किया जा सकता है, रोमिंग की सुविधा भी अगले माह से मिलेगी जिसके बाद हम अपने खेतों में बैठकर भी नेट ऐसेस कर सकेंगें ।

यदि
आप इसे लेने की सोंच रहे हैं तो मेरा सुझाव है कि अभी डाटाकार्ड को किराये पर ही लेवे । क्योंकि मुझे कल ही पता चला है कि ईवीडीओ कार्ड की कीमत जो पहले रू. 6000 के लगभग थी उसकी कीमत रू. 3000 कर दी गई है तो हो सकता है इस कार्ड की भी कीमत भविष्य में कम हो जाये ।

तकनीकि विवरण -

ZTE MY39
CDMA EVDO PC Card

Dimension 118mm x 54mm x 5mm
Weight about 60g
Dual Band (Cellular/800MHz and PCS/1900MHz)
CDMA 1X and EVDO hybrid mode
High Speed Data Service: Peak Rate up to2.4Mbps (DL)
Support SMS
Receiver Diversity by 2 Antennas (both bands)
Large volume Phone book
Compatible with OS of Windows 2000/XP
32 bit PCMCIA CardBUS


संजीव तिवारी


.

.
छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...