सरकारी दामांद अउ उपरी कमई : पीएमटी पेपर लीक (त्‍वरित टिप्‍पणी)

पहला पीएमटी पेपर लीक मामला अभी शांत नहीं हुआ था कि अब दूसरा मामला सामने आ गया। डाक्‍टर की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षा के रूप में प्रदेश में आयोजित इस परीक्षा पर अब सामान्‍य जनता का विश्‍वास उठ गया है। पिछले दो दिनों में रायपुर व बिलासपुर क्राईम ब्रांच के द्वारा डीबी भास्‍कर के सहयोग से किए गए खुलाशे में दर्जनों मुन्‍ना भाई पकड़े गए हैं। पीएमटी के पेपर पांच से बारह लाख तक में बेंचे गए और योजना इतनी तगड़ी बनाई गई कि पेपर खरीदने वाले किसी अन्‍य को यह बात ना बतला सके इसलिए उन्‍हें तखतपुर में लगभग बंधक बनाकर रखा गया, उनके मोबाईल ले लिये गए और परीक्षार्थियों के मूल अंकसूची जमा करा कर  लीक पेपर देकर तैयारी करवाई जा रही थी। सभी समाचार-पत्रों नें इसे विस्‍तृत रूप से कवर करते हुए छापा है जिससे आप सब वाकिफ हैं इस कारण समाचार पर विशेष प्रकाश डालने की आवश्‍यकता नहीं है। इस कांड के नेपथ्‍य से उठते विचारों पर चिंतन व विमर्श आवश्‍यक है।

पिछले दिनों किसानों की खस्‍ताहाली व छत्‍तीसगढ़ में घटते जोंत के रकबे में कमी होने पर कलम घसीटी करते हुए मुझे मेरे दिमाग में एक छत्‍तीसगढ़ी गीत पर ध्‍यान बार बार जा रहा था। 'मोर राजा दुलरवा बेटा तैं नगरिहा बन जाबे' छत्‍तीसगढ़ का लोक आदिकाल से अपने बेटों को किसान बनाने का स्‍वप्‍न देखता रहा है। लोक के इसी आकांक्षा ने अतिवृष्टि व अल्‍प वृष्टि और भीषण अकाल से जूझने के बावजूद छत्‍तीसगढ़ को धान का कटोरा बनाया था । समयानुसार धीरे धीरे लोक मानस में किसनहा बनने से ज्‍यादा सरकारी नौकरी करने की लालसा में वृद्धि होती गई। तनखा के अतिरिक्‍त 'उपरी कमई घलो हावय' की लालच नें गांव वालों को भी खेतों से दूर करना शुरू कर दिया। गांव से शहर आये और नौकरी करके बेहिसाब 'उपरी कमई' से अपने घर भरे अभिभावकों के मानस नें अपने बच्‍चों के लिए और सुनहले ख्‍वाब देखे। प्रतिभावन बच्‍चे अपनी क्षमता से बिना अभिभावकों के सहयोग से अपना रास्‍ता पा गए किन्‍तु औसत व कमजोर बच्‍चों के लिए अभिभावकों नें अपना दिमाक चलाना आरंभ कर दिया। अभिभावकों में पूत सपूत तो क्‍या धन संचय कहने वाले अभिभावक बिरले होते हैं, और ऐसे अभिभावकों के बच्‍चे भी अपना रास्‍ता स्‍वयं चुनते हैं। नौकरी करके पैसा कमाने वाले अधिकतर व्‍यक्ति अपने बच्‍चों के भविष्‍य के लिए अपनी तरह ही सरकारी नौकरी (सरकारी दांमांद) का रास्‍ता चुनता है, वह बैठे-बिठाए कमाई के अतिरिक्‍त व्‍यवसाय या कोई उद्यम कर पैसा कमाने की सीख अपने पुत्रों को दे ही नहीं सकता वह सरलतम रास्‍ता आपने बच्‍चों को पकड़ाता है। 

ऐसे में सरकारी नौकरी के लिए लाखो रूपयों के घूस की व्‍यवस्‍था करना और रोजगार की निश्चिंतता वाले क्षेत्र डाक्‍टर या इंजीनियर बनाने के लिए पैसे खर्च करना अभिभावकों का 'दायित्‍व' होता है। इस 'दायित्‍व' को अभिभवक कर्ज की तरह आवश्‍यक मानकर निभाते हैं, अपने कमजोर बच्‍चों को मैनेजमेंट कोटे से इंजीनियरिंग/मेडिकल कालेजों में भर्ती करवाते हैं और लाखों खर्च करते हैं। पीएमटी का वर्तमान कांड भी अभिभावकों के इसी मोह का परिणाम है। एक आम आदमी अपनी पूरी उम्र बारह लाख रूपये कमाने के लिए होम कर देता है और पीएमटी के एक पेपर के लिए लोग बारह लाख नगद यूं ही दे रहे थे। ऐसे एक दो नहीं सैकड़ों लोग है जो भावी पीढ़ी को भ्रष्‍टाचार रूपी गंदी नाली का रसास्‍वादन पहली ही सीढ़ी से करवा रहे थे। ऐसे बच्‍चे आगे चलकर क्‍या अन्‍ना हजारे का साथ दे पायेंगें। इस पीएमटी कांड के लिए मूलत: अभिभावकों का मोह ही जिम्‍मेदार हैं ऐसा भास्‍कर नें अपने त्‍वरित टिप्‍पणी में भी लिखा है। अभिभावकों के साथ ही सरकार भी इस मामले में कम दोषी नहीं है, पीएमटी परीक्षा पहले भी एक बार रद्द हो चुकी थी उसके बावजूद सरकार नें इसे गंभीरता से नहीं लिया और बच्‍चों के साथ खिलवाड़ कर दिया। 

समाचार पत्रों से ही यह ज्ञात हुआ कि इस परीक्षा की जिम्‍मेदारी जिस सचिव स्‍तर के अधिकारी की थी वे व्‍यापम के अध्‍यक्ष हैं। सरकार नें इन्‍हें विशेष अनुरोध के साथ आसाम कैडर से छत्‍तीसगढ़ बुलाया और महत्‍वपूर्ण विभाग सौंपे क्‍योंकि ये एक दबंग भाजपा नेत्री के दामांद थे यानी सरकारी दामांद जी ने एक बार पेपर लीक हो जाने के बावजूद कोई विशेष सतर्कता नहीं बरती बल्कि छुट्टियों में थे। उनके निचले स्‍तर के अधिकारियों कर्मचारियों के संबंध में इसे पढ़ने के बाद कुछ कहना शेष रह ही नहीं जाता। सरकार इस कांड के बाद भले परीक्षार्थियों को आने-जाने का खर्च व रूकने का खर्च दान कर दे किन्‍तु उसकी अक्षमता के दाग धुलने वाले नहीं हैं। समाचार पत्रों ने यहां तक लिखा कि तखतपुर में जिस धर्मशाला में फर्जीवाड़ा अंजाम दिया जा रहा था उसे भाजपा के नेता ने बुक कराया था। सरकार को, खासकर मुख्‍यमंत्री को अपने इस फजीहत पर गंभीरता से सोंचना चाहिए और पार्टी के नाम पर प्रदेश में हो रहे बाहरी घुसपैठ पर ध्‍यान देना चाहिए। हमारे पास जनसंपर्क विभाग के ऐसे आंकड़े भी उपलब्‍ध है जिनमें सरकार नें भाजपा शासित प्रदेश या भाजपा के नेताओं के अनुशंसित पत्र-पत्रिकाओं को लाखों रूपये चना-मुर्रा की तरह बांटे हैं और प्रदेश में संवेदनशीलता से प्रकाशित हो रहे पत्र-पत्रिकाओं को ढेला भी नहीं दिया है। इसे बतलाने का आशय यह है कि प्रदेश में भाजपा के नाम ऐसे काम हो रहे हैं जिससे जनता दुखी है। पीएमटी कांड के मास्‍टर मांइंड व अन्‍य मुख्‍य सदस्‍य पकड़े गए हैं और आगे उनसे पूछताछ होगी, नये खुलाशे होंगें। सरकार को गंभीरता से इस कांड से सीख लेनी चाहिए।

इस कांड के बाद बार बार परीक्षा आयोजित होने से परीक्षार्थियों नें अपने मनोबल व उत्‍साह में कमी की बात कही है जिससे मैं सहमत नहीं हूं, उनके लिए तो यह और अच्‍छी बात है। उन्‍हें बार-बार अभ्‍यास का मौका मिल रहा है। इस कांड में जो परीक्षार्थी तखतपुर में पकड़े गए हैं उन्‍हें ताउम्र व्‍यापम की परीक्षा से वंचित किया जाना चाहिए एवं उनके अभिभावकों को कानूनी दायरे में लाते हुए उन पर भी कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। 

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...