एती के बात ला ओती करना

इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे का अभिप्राय है चुगली करना (Backbite). इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी के दो अहम शब्दों का विश्लेषण करते हैं, 'एती' और 'ओती' यहां और वहां के लिए प्रयुक्त होता है इन दोनों शब्दों पर कुछ और प्रकाश डालते हैं.

संस्कृत शब्द 'एस:' से बना छत्तीसगढ़ी शब्द है 'ए' जिसका अर्थ है यह या इस 'ए फोटू : यह फोटो'. इस 'ए' और 'ओ' का प्रयोग संबोधन के लिए भी किया जाता है 'ए ललित'. प्रत्यय के रूप में 'ए' किसी निश्चयार्थ के भाव को प्रदर्शित करने शब्द बनाता है यथा 'एखरे, एकरे : इसीका', 'ए' विश्मयादिबोधक के रूप में भी प्रयुक्त होता है 'ए ददा रे : अरे बाप रे. 'ए' के साथ जुड़े शब्दों में 'एतेक : इतने', 'एदइसन : इस प्रकार का', 'एदरी : इस बार', 'एदे : यह', 'एलंग : यहॉं, दिशाबोधक', 'एला : इसे, इसको', 'एसो : इस साल' आदि शब्द प्रयुक्त होते हैं. मुहावरे में प्रयुक्त 'एती' संस्कृत शब्द इत:, इतस् व हिन्दी इत, ऐ से अपभ्रंश से 'एती' बना है. क्रिया विशेषण के रूप में 'एती' का अर्थ इधर, इस ओर, यहॉं से है. 'एती' जुड़ा एक और मुहवरा है 'एती ओती करना' यानी तितर बितर करना, इसी समानार्थी शब्द है 'ऐती तेती'.

सर्वनाम के रूप में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द 'ओ' का अर्थ वह या वो है. छत्तीसगढ़ी में 'ओ' से शुरू हो रहे कई शब्द हैं जिनका अलग अलग अर्थ हैं, इस कारण हम उनका उल्लेख फिर कभी करेंगें. अब सीधे मुहावरे पर आते हैं, क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त शब्द 'ओती' छत्तीसगढ़ी के 'ओ : उस' एवं 'ती : तरफ' से बना है जिसका अर्थ उस तरफ या उस ओर है.


अभी के दौर में एक लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी गीत है 'एती जाथंव त ओती जाथस... हाय मोला झोल्टु-राम बना देहे ओ...' इसे यू ट्यूब पर यहाँ देख सकते हैं mola jholturam bana de-chhattiasgarhi song

रमाकांत सिंह जी कहते हैं 'हम चाहे ७० ८० साल की उम्र पार कर लें बीमार पड़ने पर ए दाई, ए ददा, ही कहते हैं, साथ ही जब कभी माँ की उम्र की महिला को संबोधित करते हैं कस ओ दाई, का ही करते हैं. जो सबसे प्यारा और सम्माननीय लगता है. मेरी दादी मेरी माँ को कस गोई कहती थी और ए गोई ए सहेली के लिए प्रयुक्त किया जाता है. गाव में एक और कहावत प्रचलित है *****ए दे कर देहे न नारद कस एति के बात ल ओती****.

राहुल सिंह जी का कहना है 'एती ओती करना - तितर-बितर > तिड़ी-बिड़ी. जत-खत या जतर-खतर भी़.

अन्‍य भाषाओं में भी ऐती ओती का अभिप्राय लगभग वही है जो छत्‍तीसगढ़ी में है, भाई देवेन्‍द्र पाण्‍डेय जी बताते हैं कि यह बिहारी में..एन्ने ओन्ने काशिका में..एहर ओहर नेपाली में..एता उता के रूप में प्रयुक्‍त होता है.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...