इन तीनों छत्तीसगढ़ी मुहावरों का भावार्थ इस प्रकार है, जॉंगर पेरना : मेहनत करना, जॉंगर खिराना : शक्तिहीन होना, सामर्थहीनता व जँउहर होना : विपत्ति आना।
आईये इन मुहावरों में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों को समझने का प्रयास करते हैं। पहले मुहावरे में प्रयुक्त ‘जॉंगर’ मूलत: जॉंघ या जंघा की शक्ति के भाव से बना है। शारिरिक बल, ताकत, सामर्थ के लिए छत्तीसगढ़ी में ‘जॉंगर’ शब्द का प्रयोग होता है। इससे संबंधित अन्य मुहावरों में ‘जॉंगर के टूटत ले कमाना : खूब परिश्रम करना’, ‘जॉंगर चलना : शरीर में शक्ति रहना’, ‘जॉंगर टूटना : निकम्मा होना’, ‘जॉंगर चोट्टा : कामचोर, निकम्मा’ आदि है।
‘खिराना’ ‘खिरना’ से बना है जो संस्कृत शब्द ‘श्रय:’ या ‘कृश’ से बना है। इसी से बने सकर्मक क्रिया शब्द ‘खिराना’ का आशय समाप्त कर देना, घिस डालना, गुमा देना है। इससे मिलते जुलते शब्दों में ‘खियाना : क्षीण होना’, ‘खिरकी : झरोखा, खिड़की’, ‘खीरा : ककड़ी’ आदि हैं।
चमक का समानार्थी अरबी शब्द ‘जौ’ एवं संस्कृत शब्द 'हरणम्' से मिलकर छत्तीसगढ़ी ‘जँउहर’ बना है। वह कार्य या घटना जिससे यश, कीर्ति या मान सम्मान को क्षति पहुंचे उसे ‘जँउहर’ कहा जाता है। इसका प्रयोग अपयश, धोखा या हानि बोधक शब्द के रूप में भी होता है। शब्दशास्त्री इसे हिन्दी के ‘जीवहर’ से अपभ्रंश मानते हैं जिसके अनुसार इसका अभिप्राय मृत्युकारक घटना, मृत्यु, नाश है। छत्तीसगढ़ी में एक गाली है ‘तोर जँउहर होवय......’.
आईये इन मुहावरों में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों को समझने का प्रयास करते हैं। पहले मुहावरे में प्रयुक्त ‘जॉंगर’ मूलत: जॉंघ या जंघा की शक्ति के भाव से बना है। शारिरिक बल, ताकत, सामर्थ के लिए छत्तीसगढ़ी में ‘जॉंगर’ शब्द का प्रयोग होता है। इससे संबंधित अन्य मुहावरों में ‘जॉंगर के टूटत ले कमाना : खूब परिश्रम करना’, ‘जॉंगर चलना : शरीर में शक्ति रहना’, ‘जॉंगर टूटना : निकम्मा होना’, ‘जॉंगर चोट्टा : कामचोर, निकम्मा’ आदि है।
‘खिराना’ ‘खिरना’ से बना है जो संस्कृत शब्द ‘श्रय:’ या ‘कृश’ से बना है। इसी से बने सकर्मक क्रिया शब्द ‘खिराना’ का आशय समाप्त कर देना, घिस डालना, गुमा देना है। इससे मिलते जुलते शब्दों में ‘खियाना : क्षीण होना’, ‘खिरकी : झरोखा, खिड़की’, ‘खीरा : ककड़ी’ आदि हैं।
चमक का समानार्थी अरबी शब्द ‘जौ’ एवं संस्कृत शब्द 'हरणम्' से मिलकर छत्तीसगढ़ी ‘जँउहर’ बना है। वह कार्य या घटना जिससे यश, कीर्ति या मान सम्मान को क्षति पहुंचे उसे ‘जँउहर’ कहा जाता है। इसका प्रयोग अपयश, धोखा या हानि बोधक शब्द के रूप में भी होता है। शब्दशास्त्री इसे हिन्दी के ‘जीवहर’ से अपभ्रंश मानते हैं जिसके अनुसार इसका अभिप्राय मृत्युकारक घटना, मृत्यु, नाश है। छत्तीसगढ़ी में एक गाली है ‘तोर जँउहर होवय......’.