उछरत बोकरत ले भकोसना और सतौरी धराना

इन दो मुहावरों में पहले मुहावरे का भावार्थ अत्यिधक खाना है. मुफ्त में मिले माल को उड़ाने का भाव या किसी को नुकसान पहुचाने के उद्देश्य से माल उड़ाने का भाव इस मुहावरे से प्रतिध्वनित होता है. 

आईये इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों का आशय समझने का प्रयास करते हैं. 'उछरत' बना है 'उछरना' से जो क्रिया है, इसका आशय खाई हुई चीज बाहर निकालना, वमन, उल्टी करना है. 

'बोकरत' को समझने के लिए इसके करीब के शब्दों का आशय भी देखते चलें. छत्तीसगढ़ी शब्द 'बोकबकई' हक्का बक्का होने की क्रिया के लिए प्रयोग में आता है. इसी से बने शब्द 'बोकबोकहा - हक्का बक्का होने वाला', 'बोकबोकासी - हक्का बक्का होने की क्रिया या भाव', 'बोकबोकाना - वही' आदि है. कुछ और शब्दों में 'बोकरईन - बकरे की दुर्गंध', 'बोकरइया - वमन करने वाला', 'बोकरना - बो बो शब्द के साथ खाए हुए अनाज को मुह के रास्ते पेट बाहर से निकालना' आदि है. इस प्रकार से उपरोक्त मुहावरे में प्रयुक्त 'उछरत' और 'बोकरत' दोनो समानार्थी शब्द हैं. 

छत्तीसगढ़ी शब्द 'भकोसना' सकर्मक क्रिया के रूप में प्रयुक्त होता है. यह संस्कृत के 'भक्षण' से बना है. इसका आशय बड़ा बड़ा कौर लेकर जल्दी जल्दी खाना से है. इसी से बने शब्द 'भक्कम' का आशय है बहुत अधिक. अन्य समीप के शब्दों में 'भखइया - भक्षण करनेवाला', 'भखई - भक्षण करने की क्रिया, बोलना', 'भखना - भोजन करना, खा जाना'. महामाई ह राजा के बेटा ल भख दिस जैसे शब्द प्रयोग जिन्दा सर्वांग खा जाने, ठाढ़ लिलने के लिए 'भख' का प्रयोग होता है.

अब आईये 'सतौरी धराना' का भावार्थ और शब्दों का आशय जानने की कोशिस करते हैं. छत्तीसगढ़ में 'सतौरी धराये', 'सतौरी धरा' का प्रयोग सामान्यतया बात नहीं मानने या नियमानुसार कार्य ना करने पर झिड़कने या डांटने के लिए होता है. बुर्जुगों के द्वारा इसके प्रयोग करने पर बचपन में मैं सोंचता था कि यह गंदी गाली है किन्तु जब इसके शब्दों के अर्थों पर ध्यान दिया तब पता चला कि यह पूर्वजों को उलाहना देने के भाव के लिए प्रयुक्त होता है.

इसमें प्रयुक्त 'सतौरी' 'सत' से बना है और सत संस्कृत का मूल शब्द है जिसका आशय सत्य, श्रेष्ठ से है. सत का प्रयोग सात अंक से जुड़े भावों के लिए भी प्रयुक्त होता है, सात, सतहत्था. सत से मिलकर एक शब्द और बना है 'सतईया' इसका आशय परेशान करने वाला से है. इन तीनों अर्थों में मुहावरे का आशय स्पष्ट नहीं होता, शब्दशास्त्रियों का मानना है कि यह हिन्दी के अंक वाले 'सत' एवं संस्कृत के 'औरसी' से मिलकर बना है, इन दोनों के मिलने से जो भाव एवं आशय स्पष्ट होते हैं वह है - कोख से उत्पन्न, कोख से उत्पन्न होने वाली सातवीं पीढ़ी का पुत्र, सात पीढ़ी तक के पूर्वज. बात नहीं मानने या नियमानुसार कार्य ना करने पर झिड़कने के लिए जब 'सतौरी धरा' का प्रयोग होता है तो उसका भाव होता है सातो पुरखा को धरा यहां यह 'धरा' उन्हें कष्ट देनें से है. इस प्रकार से 'सतौरी धरा' पूर्वजों को गाली देना है. 

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...