बूड़ मरे नहकउनी दै

इस छत्‍तीसगढ़ी लोकोकित का भावार्थ है दुहरी नुकसानी. इस लोकोक्ति में प्रयुक्‍त छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बूड़' और 'नहकउनी' का अर्थ जानने का प्रयास करते हैं.

छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बूड़' से 'बुड़ना' बना है जिसका अर्थ है डूबना, अस्‍त होना. चांद, तारे, सूर्य आदि के अस्‍त होने को भी 'बुड़ना' कहा जाता है. सूर्य के अस्‍त होने संबंधी एक और शब्‍द छत्‍तीसगढ़ में प्रचलित है 'बुड़ती'. सूर्य के उदय की दिशा (पूर्व) को 'उत्‍ती' एवं सूर्य के अस्‍त होने की दिशा (पश्चिम) को 'बुड़ती' कहा जाता है. पानी या किसी दव्‍य में पदार्थ का अंदर चले जाने के भाव को भी 'बूड़ना' कहा जाता है. निर्धारित तिथि के उपरांत गिरवी रखी गई सम्‍पत्ति का स्‍वामित्‍व खो जाने को भी 'बुड़ना' कहते है. किसी को दिए हुये या किसी कार्य में लगाए गए धन के नष्‍ट होने या बर्बाद होने पर भी उस सम्‍पत्ति को 'बुड़ना' या 'बुड़ गे' कहा जाता है. इस प्रकार उपरोक्‍त लोकोक्ति में प्रयुक्‍त 'बूड़' का अर्थ डूबने से ही है.

'नहकउनी' छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'नहक' से बना है जो पार होने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. पार करने या कराने की क्रिया को 'नहकई' कहा जाता है. जीवन को या संसार को भवसागर मानते हुए भी जीवन से पार लगाने के लिए 'नहकाने' या 'नहकने' का प्रयोग होता है, किसी की मृत्‍यु होने पर 'नहक गे गा : मृत्‍यु हो गई' कहा जाता है. इस प्रकार पार लगाने की क्रिया से संबंधित शब्‍द 'नहकउनी' का अर्थ पार कराने का खर्च, शुल्‍क या पारिश्रमिक है.

डूब कर मरने की स्थिति और उसके बावजूद पार कराने का पारिश्रमिक देना पड़े यही भाव प्रस्‍तुत लोकोक्ति में अंर्तनिहित है.


इस संबंध में अकलतरा से रमाकांत सिंह जी का कहना है कि, बूड़ और गे का अर्थ डूब गया अर्थात समायोजित हो गया ..अब न लेना न देना ....मेरी जानकारी में बुड़ना एक क्रिया है जिसमे गे शब्द लगाकर क्रिया का दूसरा रूप बनाया गया है. ....जैसे.जाना, गया, जा चूका .. GO , WENT , GONE.


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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...