थोथना ओरमाना

इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ है दुख्री होना, नाराज होना. मुहावरे की प्रयोग की दृष्टि से इस पर मेरा अनुमान है कि इसका आशय स्वयं की गलती पर दुखी होना या नाराज होन है.

आईये अब इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द 'थोथना' को समझने का प्रयास करें. 'थोथना' हिन्दी के 'थूथन' से बना है जिसका आशय लम्बा निकला हुआ मुह है. इसी मुहावरे के समानार्थी मुहावरा 'थोथना उतारना' भी छत्तीसगढ़ में प्रचलित है, जिसका भावार्थ उदास होना है.

'थोथना' के समीप के छत्तीसगढ़ी शब्दों में 'थोथनहा : गुस्से में मुह उतार कर बैठने वाला', 'थोथनहिन : गुस्से में मुह उतार कर बैठने वाली' आदि हैं.

इस भाव से परे इसके नजदीक के शब्दों को भी देखें, चिचोड़-चिचोड़ कर खाने की क्रिया या भाव को छत्तीसगढ़ी में 'थोथलई' कहा जाता है. शेर या हिंसक पशु के द्वारा मृत पशु के मांस खाने को 'थोथलई' कहा जाता हैं. चिचोड़-चिचोड़ कर खाने वाले को 'थोथलईया' कहा जाता है. बोलते हुए या कोई कार्य करते हुए अटक जाने के भाव को 'थोथकना' कहा जाता है. जो कुछ काम कर नहीं सकता यानी अकर्मण्य को छत्तीसगढ़ी में 'थोथवा' या 'थोथो' कहा जाता है. ध्यान रखें कि साधनहीन के लिए भी 'थोथवा' का प्रयोग होता है जहाँ अकर्मण्यता के स्थान पर विवशता झलकती है. 'थोथवा' का प्रयोग काटने वाले औजारों के लिए तब किया जाता है जब वह धार रहित हो जावे.

'ओरवाती' के संबंध में चर्चा करते हुए हमने पहले 'ओर' के संबंध में बताया था. इस मुहावरे में प्रयुक्त 'ओरमाना' इसी के करीब का सर्कमक क्रिया शब्द है जिसका आशय लटकाने या झुकाने से है.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...