तइहा के बात बइहा लेगे

इस छत्‍तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ 'प्रचलन समाप्त होना' है. इस मुहावरे में 'तइहा' एवं 'बइहा' दो शब्‍द प्रयुक्‍त हुए हैं जिसे जानने का प्रयास करते हैं.


छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'तइहा' क्रिया विशेषण है इसका अर्थ बहुत पहले का, पुरानी बातें है. 'तइहा' का प्रयोग लिखने में 'तैहा' के रूप में भी होता है, 'तैहा' के संबंध में कहा जाता है कि यह अरबी शब्द 'तै : बीता हुआ' एवं 'हा' जोड़कर तैहा बना है जो बीत चुका के लिए छत्‍तीसगढ़ी में प्रयुक्‍त होता है. वाक्‍य प्रयोगों में 'तैहा के गोठ : पुरानी बातें' जैसे शब्‍दों का प्रयोग होता है.

छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बइहा' हिन्दी शब्द बावला से बना है जिसका अर्थ है पागल, मूर्ख. छत्‍तीसगढ़ी में 'बइहा' का प्रयोग क्रोधित होने के भाव के लिए भी किया जाता है, 'बइहा गे रे : पागल हो गया क्‍या रे / गुस्‍सा गया क्‍या रे. इसी तरह अन्‍य प्रयोगों में 'बइहा दुकाल : पागल कर देने वाला अकाल', 'बइहा पूरा : अचानक आने वाली बाढ़' आदि. इसी के करीब का छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द है 'बई' जो सन्निपात होने पर कहा जाता है. मेरी जानकारी में स्‍नायुतंत्र संबंधी बीमारी लकवा मारने की क्रिया को भी 'बई' या 'बाय' कहा जाता है यथा 'बई मारना'.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...