जउन तपही तउन खपही

संस्कृत शब्द तपस् से हिन्दी शब्द तपस्या या साधना बना. इसके समानअर्थी शब्‍द 'तपसी' (Ascetic) का छत्तीसगढ़ी में भी प्रयोग होता है. प्रस्तुत मुहावरे के भावार्थ से यह अर्थ सीधे तौर पर प्रतिध्वनित होता नहीं जान पड़ता. इसी शब्द से मिलते जुलते अन्य शब्दों पर ध्यान केन्द्रित करने पर संस्कृत शब्द तप्त से बने छत्तीसगढ़ी शब्द 'तिपोना' को देखें. 'तिपोना' गर्म होने या करने की क्रिया या भाव को कहा जाता है, इसी भाव से एक और मुहावरा प्रचलन में है 'तिपे लोहा ला पानी पिलाना' चंद्रकुमार चंद्राकर जी इसका भावार्थ गुस्साये व्यक्ति को और गुस्सा दिलाना बताते हैं जबकि मुझे लगता है कि पानी डालने का भाव गुस्से को शांत करने के लिए है.

छत्तीसगढ़ी में 'तपई' का अर्थ है तंग करने, जुल्म करने, उपद्रव करने, दुख देने, संकट में डालने, धूप या आग में किसी वस्तु को गरम करने, का क्रिया या भाव. अकर्मक क्रिया 'तपना' का अर्थ है गरम होना, दुख या विपत्ति सहना एवं यही सकर्मक क्रिया में खूब तंग करना, कष्ट देना, जुल्म करना, उपद्रव करना, संकट में डालना के लिए प्रयुक्त होता है. इससे संबंधित मुहावरा 'तपनी तपना' का प्रयोग भी यहां होता है जिसका भावार्थ दुख देना या अत्याचार करना है.

मुहावरे में प्रयुक्त शब्द 'खपही' 'खप' से बना है जो सटाकर रखने या जमाने या व्यवस्थित रखने का भाव है. खप से बना 'खपटई' छीलने का भाव या खोदने की क्रिया, भाव या खर्च को कहा जाता है. इसी में हा को जोड़ने से बने शब्द 'खपटहा' का अर्थ छीला या खोदा हुआ, उबड़ खाबड़, असमतल होता है. इसके समीप के शब्दों में हिन्दी शब्द खपना से बने शब्द 'खपत' का अर्थ माल की बिक्री या उपयोग के लिए प्रयुक्त होता है. शब्दकोश शास्त्री 'खपना' को अकर्मक क्रिया के रूप में संस्कृत के क्षेपण व प्राकृत के खेपन से निर्मित मानते है जिसका आशय माल का बिकना, उपयोग में आना, व्यय होना, जुड़ना जमना, व्यवस्थित होना, निभ जाना, मर जाना, समाप्त हो जाना, आग का मंद पड़ जाना या बुझ जाना बताते हैं.

एक और छत्तीसगढ़ी मुहावरा 'खप जाना' है जिसका भावार्थ समाप्त हो जाना, व्यतीत होना, बुझ जाना, बबार्द हो जाना, से है. इसके अतिरिक्त 'खपिस' का प्रयोग 'फभिस' के तौर पर भी होता है जिसका आशय कार्य या शोभा के योग्य होना है, यथा - जोड़ी बने खपिस'. अन्य शब्दों में 'खपरा : खपरैल', 'खपलई : उलटने की क्रिया, भार या जिम्मेदारी डालने की क्रिया. आदि'

इस प्रकार से उपरोक्‍त मुहावरे का भावार्थ है अत्याचारी का नाश होता है.



फेसबुक साथी राज कमल जी (मगध विश्वविद्यालय, बोध गया) कहते हैं कि:
"भोजपुरी-छत्तीसगढ़ी संस्कृति, भाषा, संस्कार समानता" के सन्दर्भ में, करीब छह माह तक मैने छत्तीसगढ़ के सुदूर क्षेत्रों का दौर किया। अंततः बहुत कुछ ऐसा मिला जो भोजपुरी और छत्तीसगढ़ी भाषा, संस्कृति और संस्कार से मेल खाता हुआ दिखा। छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी भाषा और बोली में एक मिठास है। वहीँ इन दोनों के संस्कृति और संस्कार में उत्कृष्टता है।
उपरोक्त मुहावरे के भावार्थ की बात करें तो छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी में काफी समानता मिलती है। छत्तीसगढ़ी में जहां इस मुहावरे का भावार्थ है - अत्याचारी का नाश होना। वही भोजुपरी में इसके "तपही" यानी "ताप" वाला, यानी आक्रोश वाला होता है। इसका अपभ्रंश 'तम' हो जाता है तो 'तमतमाना' अत्यधिक क्रोध को कहा जाता है। वहीँ 'खपही' के शब्द 'खप' से 'खप गईल' इत्यादि 'ख़त्म होना' का बोध कराते हैं। इस प्रकार भोजपुरी भाषा में आपके छत्तीसगढ़ी मुहावरे से समान भावार्थ होता है -"ज्यादा क्रोध, नाश का कारण होता है।" यानी जो ज्यादा क्रोध करता है (तमतमाता) है, ऊ खप जाता है।"


.

.
छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...