'खटिया लहुटय', 'खटिया उसलय' : खाट से संबंधित छत्तीसगढ़ी मुहावरे

चित्र दैनिक पत्रिका से साभार
आज के दैनिक समाचार पत्र 'पत्रिका' के पन्ने पलटते हुए जशपुर क्षेत्र के एक समाचार पर नजर गई. समाचार में लगे चित्र को देखते ही छत्तीसगढ़ी में प्रचलित खाट से संबंधित कुछ मुहावरे याद आ गए. समाचार एक हत्या से संबंधित था, चित्र में जिसकी हत्या हुई थी उसका शव उल्टे खाट में कपड़े से ढका दिख रहा था. छत्तीसगढ़ के गांवों में परम्परा के अनुसार किसी व्यक्ति के अत्यधिक बीमार होने एवं उसके बचने की उम्मीद कम होने पर खाट से उसे जमीन में उतार दिया जाता है. इसे 'भुंइया उतारना' कहा जाता है. गांवों में संसाधनों की कमी रही है एवं वहॉं स्वास्थ्य सेवा तो दूर सड़क परिवहन जैसी सुविधा भी नहीं के बराबर रहे हैं. इसके कारण छत्तीसगढ़ के गांवों में बीमार व्यक्ति के इलाज के लिए उसे बैद्य, गुनिया, बैगा या शहर में डॉक्टर के पास ले जाने के लिए, बीमार को खाट में लिटाकर उसे चार आदमी उठाकर ले जाते है. परिस्थितियों के अनुसार यदि ऐसी स्थिति निर्मित हो कि बीमार व्यक्ति की मृत्यु रास्ते में या इलाज के दौरान हो जाए तो लाश वापस घर लाने के लिए खाट को पलट दिया जाता है और उसमें लाश को रखकर गांव लाया जाता है. मुझे लगता है कि, मृत्यु पर खाट को पलटने की परम्परा से 'खटिया लहुटय', 'खटिया उसलय' जैसे मुहावरे का जन्म हुआ होगा. कालांतर में ये गाली या श्राप के रूप में भी प्रयोग होने लगा.

छत्तीसगढ़ी 'खटिया', संस्कृत शब्द 'खट्विका' एवं हिन्दी 'खाट' का समानार्थी है. इससे संबंधित मुहावरों में 'खटिया उतरे : मरणासन्न व्यक्ति को खाट से उतारकर जमीन पर लिटाना', 'खटिया उसलय : मरने की बद्दुआ करना, शब्दार्थ में खाट का उठ जाना या उठा दिया जाना', 'खटिया टोरना : निश्चिंत होकर आराम करना, कुछ स्थानों पर यह आलसी होने के ताने के रूप में भी प्रयोग होता है', 'खटिया धरना : बीमार पड़ जाना', खटिया पचना : लम्बे समय तक या से बीमार रहना', 'खटिया सेना : खाट पर ही पड़े रहना', 'तोरे खटिया तोरे बिटिया : घरजवांई', 'अइसन बहुरिया चटपट, खटिया ले उठे लटपट' आदि है.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...