हुदरे कोंचके कस गोठियाना

छत्तीसगढ़ी के इस मुहावरे का भावार्थ है बेरूखी से बोलना या अप्रिय ढंग से बोलना. इससे संबंधित अन्य प्रचलित मुहावरे हैं 'हुदरे कस गोठियाना : डाटते या दबाते हुए बोलना', 'हुरिया देना : ललकारना', 'हूंत कराना : आवाज लगाना', 'हूदेन के : जबरन', 'हुद्दा मार के : जबरन', 'गोठ उसरना : अधिक बातें करना' आदि हैं.

अब आईये इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों का विश्लेषण करते हैं. शब्द 'हुदरे' को समझने के लिए इसके क्रिया रूप को समझते हैं. इसका सकर्मक क्रिया रूप है 'हुदरना' जो फारसी के शब्द 'हुद' से बना है जिसका अर्थ है ठीक. प्रचलन एवं अपभ्रंश रूप में छत्तीसगढ़ी के 'हुदरना' का आशय किसी दोष या गलती को ठीक करने या उस ओर ध्यान बटाने के लिए दूसरे को किसी चीज से कोंचना या धक्का देने से है. इसका प्रयोग धक्के से अवरोध तोड़कर अपना मार्ग प्रशस्त करने के लिए भी होता है. इस कार्य को करने वाले को 'हुदरईया' कहा जाता है. किसी कार्य के लिए बार बार बोलने वाले को भी 'हुदरईया' कहा जाता है. इसी क्रिया या भाव को 'हुदरई' व 'हुदरना' कहा जाता है.

सामान्य बोलचाल में प्रयुक्त 'हुदरे' शब्द 'हुद्दा' मारने के करीब है ऐसा मुझे प्रतीत होता है. 'हुद्दा मारना' कुहनी से धक्का मारने को कहा जाता है. शब्दशास्त्री 'हुद्दा' को हिन्दी शब्द हुड्ढ से बना हुआ मानते हैं जिसका आशय अधिक उछलकूद व उत्पात से है. एक और प्रचलित शब्द 'हुदियाना' है जिसका आशय हल्का हल्का या धीरे धीरे धक्का मारना होता है. 'हुदेला' व 'हुदियाना' का आशय भी वही है किन्तु इन सभी शब्दों में 'हुद' का जुड़ना कुहनी से धक्का मारने से संबंधित है.

'कोंचके' शब्द 'कोचई' से बना है, संज्ञा रूप में यह संस्कृत के 'कुजिंका व अरबी के घुंइया' से बना है जिसका आशय अरबी से है. कोचई से संबंधित एक कहावत 'कोचई कांदा होना' भी यहां प्रचलित है जिसका भावार्थ विचार सीमित होना है, दूसरा 'कोचई नीछना' समय को व्यर्थ गंवाने के लिए होता है. 'कोचई' के इस संज्ञा रूप से हमारे उपरोक्‍त मुहावरे का भावार्थ स्‍पष्‍ट नहीं होता है. 'हुदेला' व 'हुदियाना' का आशय भी वही है किन्तु इन सभी शब्दों में 'हुद' का जुड़ना कुहनी से धक्का मारने से संबंधित है.

'कोंचके' शब्द 'कोंचई' से बना है, क्रिया रूप में यह संस्कृत के 'कुच्' से बना है जिसका आशय चुभाना, गड़ाना, दबाना, ठांसना है. 'कोंचईया' से आशय चुभाने वाला, याद दिलाने वाला, बहकाने वाला होता है. 'कोंचकई' इस क्रिया या भाव को कहा जाता है. इस आशय के करीब एक मुहावरा है 'कोंचक के घाव करना : जबरदस्ती दुश्मनी बढ़ाना'.

इससे मिलते जुलते शब्दों में 'कोचरई' का आशय सिकुड़ने की क्रिया या भाव के साथ ही कंजूसी या कृपणता भी है. 'कोचराना' किसी फल सब्जी का सिकुड़कर खराब हो जाने पर भी कहा जाता है. एक शब्द है 'कोचनिन' इसका आशय है किसी वस्तु का खरीदी बिक्री का कार्य करने वाले की स्त्री या उस पुरूष की स्त्री से है.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...