झकझक ले दिखना और झख मारना

छत्तीसगढ़ी मुहावरा ‘झकझक ले दिखना’ का भावार्थ एकदम साफ दिखना है एवं ‘झख मारना’ का भावार्थ बेकार समय गंवाना है।

इन दोनों मुहावरों में प्रयुक्‍त छत्तीसगढ़ी शब्‍द ‘झक’ व ‘झख’ को समझने से दोनों मुहावरे का भावार्थ हमें स्पष्ट हो जायेगा। पहले मुहावरे में प्रयुक्त ‘झक’ का दुहराव शब्‍द युग्म बनते हुए ‘झकझक’ बना है। छत्तीसगढ़ी शब्द ‘झक’ संस्कृत के ‘झषा’ से बना है जिसका आशय ताप, चमक, स्वच्छ है। ‘झक’ और ‘झक्क’ का प्रयोग हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी दोनों में समान रूप से साफ दिखने या चमकने के लिए होता है। क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त शब्द ‘झकझक’ का आशय चमकता हुआ, बहुत साफ या स्पष्ट है, पर्दारहित या खुले रूप में प्रस्तुति के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है।

संभवत: शब्‍द विकास की प्रकृया में चमक को अप्रत्याशित रूप में स्वीकारते हुए ‘झकझक’ को चमकने या चमकाने की क्रिया या भाव, हड़बड़ी करने की क्रिया या भाव भी मान लिया गया। इस प्रकार से ‘झकझक’ करने वाले को ‘झकझकहा’, ‘झकझकइया’ या ‘झकझकहिन’ कहा गया। इसी भावार्थो में ‘झकझकाना व झकनई : चमकने या चमकाने की क्रिया या भाव, हड़बड़ी करने की क्रिया या भाव’ एवं ‘झकझकासी : चमकने या चमकाने की की इच्‍छा, हड़बड़ी करने की इच्छा’ के रूप में प्रचलित है। इसी के चलते चमकने वाले या कम समझ के व्‍यक्ति को ‘झक्‍की’ कहा जाने लगा होगा।

शब्द विस्तार एवं नजदीक के शब्दों पर ध्यान केन्द्रित करने पर एक शब्द ‘झझक’ का प्रभाव या अपभ्रंश ‘झकझक’ पर नजर आता है। चमकने या चमकाने की क्रिया या भाव के लिए ‘झझक’ का प्रयोग होता है। इसी ‘झझक’ से बने शब्द ‘झझकना’, ‘झुझकना’ आदि का प्रयोग भी ‘झकझक’ से बने शब्दों की भांति होता है।

कार्य पूरा करने की धुन में ढंग से बिना देखे समझे जल्दबाजी करने की क्रिया या भाव को ‘झकझिक - झकझिक’ कहा जाता है। इसका प्रयोग किसी कारण वश बार बार और जल्दी जल्दी आने जाने की क्रिया या भाव को, हड़बड़ी को भी ‘झकझिक - झकझिक’ करना कहा जाता है।

चौकने के भाव के लिए ‘झनकई’ का भी प्रयोग होता है जो झनक यानी कम्पन के समानार्थी रूप में छत्तीसगढ़ी में प्रयुक्त होता है। झांकने की क्रिया के लिए प्रयुक्त शब्‍द ‘झकई’ कम दिखने के लिए भी प्रयुक्त होता है। हिन्दी में झटका देने, जोर से हिलाने की क्रिया के लिए प्रयुक्त ‘झकझोरना’ का प्रयोग छत्‍तीसगढ़ी में समानअर्थों में किया जाता है। ठंडी हवा या बारिस के झोंके के लिए छत्तीसगढ़ी में ‘झकोर’ या ‘झकोरा’ ‘झक्कर’ का प्रयोग होता है।

दूसरे मुहावरे में प्रयुक्त ‘झख’ का आशय मजबूरी या विवशता है। हिन्दी में भी यह इसी अर्थ के साथ प्रचलित है। वाक्य प्रयोग में ‘झकमारी’ या ‘झखमारी’ का आशय विवशता, मजबूरी या लाचारी है।

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...