जइसन ला तइसन मिलै, सुन गा राजा भील. लोहा ला घुन खा गै, लइका ला लेगे चील.

इस छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति का भावार्थ है दूसरों से बुरा व्यवहार करने वाले को अच्छे व्यवहार की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए अर्थात जैसे को तैसा व्यवहार मिलना चाहिए.

पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही वाचिक परम्परा की इस लोकोक्ति का उल्लेख सन् 1978 में डॉ.मन्नू लाल यदु नें अपने शोध प्रबंध 'छत्तीसगढ़ी-लोकोक्तियों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन' में किया है. उन्होंनें इसे 'जैसन ला तैसन मिलै, सुन राजा भील. लोहा ला घुना लग गै, लइका ल लेगे चील. लिखा है, व्यवहार में एवं प्रचलन के अनुसार मैंनें इसके कुछ शब्दों में सुधार किया है.

इस लोकोक्ति के भावार्थ के संबंध में गांव के बड़े बुर्जुगों को पूछने पर वे एक दंतकथा बताते हैं. डॉ.मन्नू लाल यदु नें भी अपने शोध प्रबंध में उसका उल्लेख किया है. आइये हम आपको इस लोकोक्ति से जुड़ी दंतकथा को बताते हैं.

एक गांव में दो मित्र आस पास में रहते थे, दोनों में प्रगाढ़ मित्रता थी. एक बार एक मित्र को किसी काम से दूर गांव जाना था. उसके पास वरदान में मिली लोहे की एक भारी तलवार थी, उसने सोंचा कि वह भारी तलवार को बाहर गांव ले जाने के बजाए अपने मित्र के पास सुरक्षित रख दे और वापस आकर प्राप्त कर ले. उसने वैसा ही किया और तलवार दूसरे मित्र के घर रखकर दूर गांव चला गया. कुछ दिन बाद वह वापस अपने गांव आया और अपने मित्र से अपनी तलवार मांगा, किन्तु मित्र लालच में पड़ गया और तलवार हड़पने के लिए बहाना बना दिया कि मित्र उस तलवार को तो घुन खा गया. (घुन वह कीड़ा है जो लकड़ी में लगता है और धीरे धीरे पूरी लकड़ी को खा जाता है) तलवार का स्वामी मित्र के इस व्यवहार से बहुत व्यथित हुआ किन्तु कुछ कर ना सका.

समय बीत गया, बात आई गई हो गई. कुछ समय व्यतीत होने के उपरांत दूसरे मित्र को भी किसी काम से बाहर गांव जाना पड़ा. उसे जल्दी जाना था और परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि उसे अपने छोटे बच्चे को मित्र के पास छोड़ना पड़ा. काम निबटा कर जब वह वापस गांव आया और अपने बच्चे को मित्र से मांगा तो मित्र ने कहा कि उसे तो चील उठा कर ले गया.

दोनों के बीच लड़ाई बढ़ी और बात भील राजा के दरबार में पहुची. राजा ने मामला सुना और समझा, उसने न्याय करते हुए तलवार को दबा लेने वाले से मित्र को तलवार वापस दिलाई, मित्र नें उसे उसका बच्चा वापस दे दिया.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...