कलप डारना व कल नइ परना

छत्तीसगढ़ी मुहावरा ‘कलप डारना’ का भावार्थ आर्तनाद करना है एवं ‘कल नइ परना’ का भावार्थ शांति चैन नहीं मिलने से है। आईये आज इन दोनों मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द ‘कलप’ एवं ‘कल’ के संबंध में चर्चा करते हैं।
इस ब्लॉग में दिए जा रहे छत्तीसगढ़ी शब्दों के आशय एवं शब्द विश्लेषण, शब्द उत्पत्ति के विवरण भाषा विज्ञान की दृष्टि से एकदम सटीक हैं, ऐसा हम नहीं कह रहे हैं. हमारा प्रयास यहॉं प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी शब्दों का आशय, सामान्य बोलचाल एवं समझ के अनुरूप, आपके समक्ष रखना है. इसे प्रयोजनमूलक या कामकाजी व्यवहार में आने वाले शब्दार्थ के रूप में स्वीकारेंगें तभी हमारा प्रयास सफल होगा. भाषा विज्ञान की दृष्टि से आशय या शब्दोत्पत्ति संबंधी कोई त्रुटि पाठकों को नजर आती है तो वे टिप्पणियों के द्वारा हमें अवगत करायें ताकि उसे सुधारा जा सके. छत्तीसगढ़ी से नजदीकी संबंध रखने वाले भाषा समूहों के पाठक यदि उन भाषाओं के मिलते जुलते या आशयों वाले शब्दों के संबंध में टिप्पणी करेंगें तो शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन भी होता जावेगा.
मुहावरे में प्रयुक्त ‘कल’ प्राकृत के ‘कल्ल’ से बना है जिसका आशय चैन, आराम या सुख है, शब्दकोष शास्त्री इसे अव्यक्त मधुर ध्‍वनि भी कहते हैं। ‘कल’ से बने अन्य छत्तीसगढ़ी शब्दों में एक शब्द ‘कलउली’ है जो हिन्दी के ‘कलपना’ का समानार्थी है और यही छत्तीसगढ़ी शब्द ‘कलप’ का आशय भी है। जिसका आशय चीत्कार करना, गिड़गिड़ाना या बार बार प्रार्थना करने की क्रिया या भाव है। बेचैनी, व्याकुलता व वाद विवाद, झगड़ा, कलह, क्रोध, रोष के साथ ही तीव्र भूख के लिए एक और छत्तीसगढ़ी शब्द बहुधा प्रयोग में आता है वह है ‘कलकली’।

इस शब्द से संबंधित ‘कलकली छाना’ मुहावरा प्रयोग में आता है जिसका भावार्थ बहुत भूख लगाना है। इस शब्द के भावों के करीब वाद विवाद करने वाला व झगड़ा करने वाला को ‘कलकलहा/कलकलहिन’ कहा जाता है। बेचैनी के भाव को प्रर्दशित करने वाले शब्‍दों में अरबी शब्द ‘क़ल्क़’ से बने छत्तीसगढ़ी शब्द ‘कलकुथ’ का आशय घबराकर विविध चेष्टांए करने का भाव, व्यग्रता, आतुरता है। तरसने की क्रिया या भाव व विलाप करने की क्रिया या भाव के आशय से ‘कलपई’ का प्रयोग होता है। व्याकुल होने, तिलमिलाने की क्रिया या भाव के लिए ‘कलबलई’ का प्रयोग होता है। दुख के कारण अधिक शोर मचाने, एक ही बात को बार बार कहने, दुख गोहराने की क्रिया या भाव को ‘कल्हरई’ कहा जाता है।


इन्हीं शब्दों के अर्थों को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ी में एक मुहावरा प्रचलित है जिसमें कहा गया है कि दो पत्नियों का पति हमेशा परेशान रहता है 'दू डउकी के डउका कलर कईया'. छत्तीसगढ़ी के सहयोगी बोली भाषाओं में कलप और कल का आशय पूछने पर बस्तर में बोली जाने वाली गोंडी भाषा बोलने वाले बतलाते हैं कि गोंडी में शराब को 'कल' कहा जाता है. इसके शब्द प्रयोग में वे महुवे की शराब को 'कलकद्दा' और दारू पीने की क्रिया को 'कल उन्डाना' कहते हैं.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...