फ़रिया (Fariya)

डॉक्टर मिस्टर तिरपाठी जब विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे तो उनके अनेक देशी विदेशी शोधार्थी छात्र—छात्रा उनसे मिलने, उनका मार्गदर्शन लेने उनके घर आते रहते थे. सुबह सुबह डॉक्टर मिस्टर तिरपाठी संस्कृत मंत्रों के जाप में और डॉक्टर मिसिज़ तिरपाठी रसोईघर में व्यस्त थे, इसी समय में विदेशी छात्राओं का दल डॉक्टर साहब के घर पहुचा. बैठक में कामवाली बाई फर्श पर पोछा लगा रही थी, और छात्रायें सोफे पर बैठे पोरफेसर साहेब के मंत्र सिराने का इंतजार कर रही थी. एक उत्सुक छात्रा नें कामवाली बाई से पूछा 'व्हाट इज दिस!!' काम वाली बाई को कुछ समझ में आया पर वह चुप रही. पोछा के कपड़े की ओर इशारा करके जब विदेशी छात्रा नें बार बार पूछा तो कामवाली बाई नें तार तार हो गए साहेब के कमीज से बने पोछे के कपड़े को दो उंगली में उपर उठा कर दिखाते हुए कहा — 'दिस इज फ़रिया!!' विदेशी छात्रायें कुछ समझती इसके पहले ही डॉक्टर मिसिज तिरपाठी आ गईं, हाय हैलो के बाद समझाया कि इंडिया में इसी तरह पुराने कपड़े को पानी में डुबो कर पर्श पोंछा जाता है. पोरफेसर साहेब के घर से निकल कर विदेशी छात्रायें देर तक 'फड़िया!' 'फडिया!' 'फरिया!' कह कह कर हंसती रही. महाविद्यालय के गलियारों में भी बहुत दिनों तक 'फरिया!' का वाकया हंसी के ठहाकों के साथ गूंजता रहा.

बात आई गई हो गई, एक दिन समाचारों से ज्ञात हुआ कि शहर में गरीब महिलाओं के सर्वांगीण विकास के वास्ते सरस्वती महिला बैं​क खुल गया है, जिसमें पैसा जमा करने पर ज्यादा बियाज मिलेगा और गरीबों को करजा देनें में प्राथमिकता दी जावेगी. समाचार यह भी था कि बैंक में डॉक्टर मिसिज़ तिरपाठी सर्वेसर्वा चुन ली गई. आगे के समाचारों में था कि कामवाली बाईयों के पैसों का पूरा ध्यान रखा जायेगा.. ब्लॉं..ब्लॉं..ब्लॉं. मुझे 'फरिया!' याद आ गया. बहुसंख्यक स्वप्नजीवी समाज के पैसों को साफ करने का साधन. 'फरिया!'

बात फिर आई गई हो गई, कुछ महीनों के बाद समाचार नें लिखा कि सरस्वती महिला बैंक डूब गई, बैंक नें सचमुच लोगों का पैसा साफ कर दिया. इससे बड़े घरों की बड़ी बड़ी कामवाली बाईयों के घरों में कीचड़ के छींटे पड़ गए. उन्होंनें फिर 'फरिया!' को याद किया. घर के छींटे पोछे और देश विदेश के आलीशान बंगलों के किसी सोफे के पीछे दुबक गईं.

जनता भोली है बात को आने जाने दे देती है. कुछ बरसों के बाद कम्बख्त़ समाचार पत्रों नें फिर लिखा कि सरस्वती बैंक के दफ़्तरी नें डॉक्टर मिसिज़ तिरपाठी सहित मंत्री, संत्री और कंत्री का नाम धरते हुए कह दिया है कि उसने बैंक के लाकर में पोछा मार कर सारा पैसा ठेले में भर कर फलां फलां के घर पहुचाया है. मैंनें फिर सोचा कि 'फरिया!' के बिना इस तरह की पोछाई संभव नहीं. पोछा लगाने के लिए 'फरिया' हमेशा छोटे और जरूरतमंद लोगों के हाथ में होती है, बड़े लोगों के हाथ में होती है रिमोट.

'फरिया!' मेरे मानस से गायब होने का नाम ही नहीं ले रहा था कि तभी टीभी में देखा डॉक्टर मिसिज़ तिरपाठी अपने आप को बेदाग साबित करते हुए कुछ बयान दे रही थी. मैंडम का चेहरा दमक रहा था, घर में बैठक का फर्श भी चमक रहा था, किसी कामवाली बाई नें 'फरिया!' से फर्श चमका दिया था भले उस कामवाली बाई की किस्मत एक अदद 'फरिया' के लिए तरसती रहे.

संजीव तिवारी

किसानों की जमीन छीनकर उसी से व्यवसाय कर रही सरकार

पिछले दिनों नया रायपुर विकास प्राधिकरण के संचालक मंडल की हुई बैठक के बाद समाचार पत्रों में तथाकथित समाचार प्रकाशित हुए कि सरकार अब नया रायपुर में किसानों से ली जाने वाली भूमि का मुआवजा 75 लाख रूपया हैक्टेययर देगी। इस समाचार से किसानों के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों को कुछ सुकून मिला। 

आत्महत्या करने के लिए विवश किसानों के इस देश में जमीन का तीन गुना मुआवजे का बढ़ना, सचमुच में सुखद है। हमने मामले की पड़ताल करनी चाही तो पता चला कि नया रायपुर विकास प्राधिकरण के पक्ष में पिछले मार्च में कई कई पन्नों के भू अर्जन अधिसूचना विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए। यह विज्ञापन नया रायपुर विकास प्राधिकरण के योजना क्षेत्र में भू अर्जन के अंतिम किश्त के रूप में प्रकाशित हुई थी। प्राधिकरण नें पहले तो आपसी समझौता से लगभग नब्बे प्रतिशत भूमि हथियाया, फिर कई चरणों में सम्पन्न कानूनी भू अर्जन के बाद लगभग दो तीन प्रतिशत बचत भूमि को अर्जित करने के लिए अधिसूचना प्रकाशित करवाई । इस प्रकार माने तो विकास योजना की लगभग पूरी भूमि कम दरों पर पूर्व में ही अधिग्रहित कर ली गई थी। कुछ बची भूमि जिसकी मात्रा बहुत कम है, उसके लिए दरियादिली दिखाते हुए तीन गुना दर तय कर देना किसानों के हितैसी होने का दिखावा मात्र है।

इन समाचारों से निकल कर आ रहे तथ्यों में प्राधिकरण के व्यासवसायिक सोच का आंकलन कीजिए, प्राधिकरण नें किसानों की भूमि लगभग 25 रू. फिट या इससे भी कम में खरीदी है और बेचनें का निर्णय लिया है लगभग 2500 रू. फिट में। यानी किसानों की भूमि से 1000 गुना कमाई की जा रही है, कौड़ी के मोल जमीन खरीदकर हीरे के दाम पर बेंची जा रही है। अपनी ही भूमि से किसान विस्थापित हो रहे हैं और प्राधिकरण उनकी जमीनों का व्यवसाय कर रही है। किसान जब वाजिब मुआवजे की बातें करते हैं तो उनकी बातें अनसुनी कर दी जाती है। आन्दोंलन की राह यदि अपनायें तो पुलिस और प्रशासन किसानों के वाजिब मांग को दबाने के लिए हर संभव प्रयास करती है। अब यदि इस व्यावसायिक सोच की बात प्राधिकरण से की जाए तो वे कहेंगें कि हमने अधोसंरचना विकास पर खर्च किए है किन्तु क्या। इसके लिए इस कदर कमाई किया जाना उचित है, यदि कमाई हो रही है तो उसे किसानों को लाभाशं के तौर पर बांटा जाना चाहिए।

न्यायालयीन प्रक्रिया से गुजरते हुए हमने देखा है कि, पिछले मार्च में प्राधिकरण के अधिकारी किसानों के भूमियों के भू अर्जन के लिए किस कदर उतावले थे। सूचना के अधिकार के तहत इन पंक्तियों के लेखक को प्राधिकरण की एक अभिप्रमाणित नोटशीट प्राप्त हुई जिसमें लिखी गई टिप्पिणी पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, नया रायपुर विकास प्राधिकरण कितनी जल्दी में किसानों की भूमि का अर्जन करना चाहती है यह उक्त नोटशीट से ज्ञात होता है। उक्ती नोटशीट में एक अधिकारी नें मार्च के अंतिम सप्ताह में ही अधिग्रहण प्रकाशन की प्रक्रिया 'अभियान चलाकर' पूर्ण करनें का आदेश दिया है। बाकायदा अगले छुट्टियों के दिनांकों का उल्लेख करते हुए अधिकारी नें लिखा है कि अधिसूचना का प्रकाशन 31 मार्च तक हो जाना चाहिए। नोटशीट में त्वररित कार्यवाही करते हुए कार्यालयीन व न्यायालयीन कार्यवाही को चुटकियों में निबटाने व शीध्र कार्यवाही के आदेश दिये गए हैं। यहां मैं ध्याब दिलाना चाहूंगा कि किसानों के अनुरोधों व आवेदनों पर प्राधिकरण सालों ध्यान नहीं देती है वहीं भूमि छीनने के लिए किस कदर जल्दबाजी मचती है । प्राधिकरण के द्वारा भूमि स्वामियों व जनता के हितों से ज्यादा प्राधिकरण के हितों के संरक्षण की बात उक्त आर्डर शीट में की गई है एवं स्पष्ट लिखा गया है कि मार्च के बाद अधिसूचना प्रकाशित होने पर नये दर पर भुगतान करना होगा जिससे प्राधिकरण को काफी नुकसान होगा। भूमि स्वामियों के संवैधानिक हक का कतई परवाह किए बगैर प्राधिकरण का अभिप्राय व आशय देखिए प्राधिकरण को नुकसान ना हो भले जनता, भू स्वामी, किसान का नुकसान हो जाए। सर्वोच्च न्यायालय अपने न्याय निर्णयों में भूमि स्वा्मियों के भूमि से हक समाप्त होने पर उन्हें अधिकाधिक मुआवजा एवं राहत देने की बात कर रही है और प्राधिकरण के अधिकारी जल्दी से जल्दी कार्यवाही चाहते है ताकि भूमि स्वामियों को अधिकाधिक नुकसान पहुचें। अलोकतांत्रिक व दमनकारी सोच व असंवैधानिक आशय का यह एक नमूना मात्र है, ऐसे कई नमूनें होगें जो प्राधिकरण के किसान विरोधी छवि को स्पष्ट कर देगें।

विकास के नाम पर जमीनों की लूट एवं नित नये विवादों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र नें सालों पहले बने भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने की अनुसंशा की है। इस नये कानून में पुर्नवास एवं मुआवजे की अच्छी व्यवस्था की गई है, भूमि का दो से चार गुना मुआवजा देने का प्रावधान इस नये कानून में बनाया गया है। बाजार मूल्य के निर्धारण के लिए भी राज्य के भर्राशाही को इसमें नियंत्रित किया गया है एवं वास्तविक बाजार मूल्य के आंकलन के प्रावधान दिए गए हैं। संवैधानिक समिति के सुझावों पर आस करें तो इसमें मुआवजे का कट आफ डेट जो तय किया जा रहा है उसमें वे सभी अर्जन के प्रकरण आयेंगें जिनमें मुआवजा तय नहीं किया गया है। संसद में नया भूमि अधिग्रहण कानून पेंडुलम की तरह पास होने की आस में लटका हुआ है। इधर सरकारें जल्दी से जल्दी अर्जन कर लेना चाह रही हैं कि उनके खजाने पर अर्जित भूमि का अतिरिक्त भार ना पडे, किसानों के हित की परवाह किसे है।

इसी तरह के और भी कई मुद्दे हैं जिसके लिए अपनी तरफ से किसान संघर्ष समिति के सदस्य लगातार संघर्ष कर रहे हैं। किन्तु देखा यह जा रहा है कि प्राधिकरण के अंतिम ब्रम्हास्त्र अधिग्रहण कानून के चक्रव्यूह के आगे सभी सघर्ष भोथरे हो जाते हैं। धरना प्रदर्शन, विज्ञप्ति ज्ञापन से कुछ नहीं हो पाता इसके लिए विधिवत दस्तावेजी कार्यवाही की आवश्यअकता होती है जो किसानों के द्वारा अज्ञानता या अकुशलता के कारण प्रभावी ढ़ग से नहीं किया जाता। राजधानी प्रभावित गांवों के किसान अपने पुरखों की जमीन को खोकर, अपना भविष्य होम कर प्राधिकरण के फेंके रोटी के चंद तुकडों में नई दुनिया बसाने के ताने बाने में उलझे हैं और नया रायपुर विकास प्राधिकरण इन्हीं किसानों की भूमि को कम दर में क्रय कर अधिक दर में बेंचने का व्यवसाय करते हुए लाभ कमाने में लगी है।

संजीव तिवारी

शकुन्तला शर्मा बैंकाक में सम्मानित

14 प्रतिष्ठित पुस्तकों की चर्चित लेखिका शकुन्तला शर्मा जी के संबंध में मुझे जानकारी 'कोसला' के विमोचन के समाचारों से हुई थी. तब से मैं उनसे और उनकी कृतियों से साक्षात्कार चाहता था. गुरतुर गोठआरंभ के इस मुहिम के लिए मुझे छत्तीसगढ़ के प्रत्येक उजले पक्षों पर नजर रखनी थी और उन्हें ​किसी भी रूप में इंटरनेट में लाने का प्रयास निरंतर रखना था. इसी कड़ी में उनसे एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई. उनके स्नेहमयी व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता से रूबरू हुआ. प्रसिद्ध भाषाविद और साहित्यकार डॉ.विनय कुमार पाठक नें उनके संबंध में लिखा है '.. शकुन्तला शर्मा संस्कृत, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषा तथा साहित्य में समानाधिकार रखने वाली विदुषी कवयित्री हैं ..' यह बात उनकी कृतियों को पढ़ते हुए स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है.

साहित्य के नवचार के प्रति सजग एवं इंटरनेट प्रयोक्ता शकुन्तला शर्मा जी नें मेरे आग्रह पर अपना ब्लॉग (शाकुन्तलम्) बनाया. साहित्यकारों के सोच के अनुसार इंटरनेट तकनीकि के असामान्य आभासी गढ़ों को ध्वस्त करते हुए वे हिन्दी ब्लॉगिंग पर अब भी सक्रिय हैं. उनकी कृतियों एवं ब्लॉग पर आगे फिर कभी चर्चा करेंगें. अभी अवसर है उन्हें शुभकामनायें देने का, ग्यारहवें अन्तर्राष्ट्रीय कवयित्री सम्मेलन बैंकाक में भारत के राजदूत श्री अनिल वाधवा के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ. विभिन्न‍ देशों से आमंत्रित अन्तर्राष्ट्रीय कवयित्रियों के उक्त‍ सम्मेलन ‍में भिलाई की शकुन्तला शर्मा को "THE BLESSED JUNO" सम्मान से अलंकृत किया गया. निरंतर साहित्य सृजन में रत शकुन दीदी को बहुत बहुत बधाई.
शकुन्तला शर्मा जी का ब्लॉग है — शाकुन्तलम् http://shaakuntalam.blogspot.in

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...