चिपचिपा रिसता खून

पता नहीं कौन सा साल था वह, बचपन में उम्र क्या थी पता नहीं, वक्त भी पता नहीं, पर उजाला था आसमान में. उनींदी आंखों जब खुली तो सिर में खुजली हो रही थी. हाथ जब बालों में गई तो दर्द हुआ सिर में, दर्द हुआ उंगलियों में, कुछ चिपचिपा महसूस हुआ. झट बालों से बाहर निकले उंगलियों को जब अंगूठे नें छुआ, तो फिर दर्द हुआ. अंगूठे नें महसूस किया, आंखों नें देखा, चिपचिपे द्रव के साथ. कांछ उंगलियों में, सिर में, शरीर में, बाबूजी, दीदी के कपड़ों पर, बस में, चारो तरफ बिखरे थे. बाबूजी के सिर से भी खून बह रहा था पर उन्होंनें मुझे हिफाजत से पकड़ा था. बाहर पेंड ही पेंड, कुछ में लटो में आम, शायद जंगल था. नीचे गहरी खाई, बस का एक पहिया हवा में. पेंड से टकरा गई थी बस, खिड़कियों के शीशे हमारे शरीरों में चुभते हुए बिखर गई थी सड़क पर. बाबूजी नें कहा था एक्सीडेंट हो गया!. मेरे सिर के बालों में घुसे महीन कांछ के तुकड़े, बूंद बूंद खून सिरजा रहे थे. उंगलिंयॉं बार बार सिर खुजाने को बालों की ओर लपकती और बाबूजी मेरा हाथ रोक देते. एक बड़ा तुकड़ा भी गड़ गया था सिर में. दर्द से, जाहिर है, मेरे आंसू निकल रहे थे और मुह से नाद. अगले कुछ पलो में बस से सब अपना अपना सामान लेकर उतर गए. नीचे सड़क पर कांछ के साथ बस के आस पास बिखरे थे आम. बाबूजी के एक हाथ में भारी बैग दूसरे में मेरा हाथ. मैं दर्द भूलकर आम उठाने झुका और एक आम उठा भी लिया. बाबूजी नें अपने बंगाली के कंधे से सिर से आंख में बहते हुए खून को पोंछा और मुझे एक भद्दी सी छत्तीसगढ़ी गाली दी. मर रहे हैं और तुझे आम सूझा है. उन्होंनें शब्दों को आगे जोड़ते हुए कहा, तब तक मेरे खून सने हाथों नें आम को मुह तक पहुचा दिया था. दूसरी बस कब आई, कब हम जगदलपुर पहुंचे, मुझे नहीं पता.

किन्तु आज भी, जब कभी भी, बस्तर के जंगलों में हो रहे मार काट में किसी मानुस के खून बहने की खबर, समाचारें लाती है. मेरी उंगलियॉं मेरे सिर के बालों में अनायास ही चली जाती है. उंगलियॉं महसूसती है, चिपचिपा रिसता खून, और सिर में दर्द होने लगता है.
.. तमंचा रायपुरी.


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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...