अश्लीलता व नग्नता का आरोपी : सआदत हसन ‘मंटो’


उर्दू के बहुचर्चित कथाकार सआदत हसन ‘मंटो’ से मैं 1985-86 में परिचित हुआ तब सारिका, हंस व अन्य साहित्तिक प‍त्र – पत्रिकाओं में गाहे बगाहे देवेन्द्र इस्सर के मंटोनामें एवं मंटो की कहानियों पर चर्चा होती थी । मंटो की कहानी ‘टोबा टेकसिंह’ मैंनें 1985 में पढी थी । उस समय मेरे समकालीन साहित्यानुरागी (?) मित्रों के द्वारा शहादत हसन ‘मंटो’ के साफगोई, नग्नता एवं विद्रूपों पर जोरदार प्रहार की कहानियों का जिक्र किया जाता था । निजी चर्चा बहसों में बदल जाती थी, तरह – तरह के विचार मंटो की नग्नता व कामुकता के इर्द गिर्द घूमती थी । ‘उपर, नीचे और दरमिंयॉ’, ‘ठंडा गोस्त’ व ‘बू’ जैसी कहानियों पर हमने मित्रों के बीच चटोरे ले लेकर गंभीर वार्ता भी की थी, अब वे दिन याद आते हैं तो हंसी आती है । गोष्ठी में महिला मित्र के सामने मंटो पर कुछ भी कहते हुए मेरी घिघ्घी बंध जाती थी और एक तरफ मंटों महोदय थे जो ‘बकलम’ में अपनी फांके मस्ती में भी रोज शाम बीयर पीने और अपनी नौकरानियों से संबंध स्थापित करने की बात को भीड में किसी से टकरा जाने एवं ‘सॉरी’ कहकर आगे बढ जाने जैसे वाकये सा यूं ही स्वीकार कर जाते थे ।
सआदत हसन ‘मंटो’ की कहानी दादी मॉं द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाली कहानी तो थी नहीं, उसके शव्द शब्‍द व पैरा पैरा को आत्मसाध करना एक अलग ही अनुभव देता था उनकी कुछेक कहानियॉं ही हमें उपलब्ध हो पाई थी जिन्हें पढने के बाद ही हमने जाना कि प्याज के छिलके की तरह परत दर परत छिलके उतारते हुए नंगी सच्चाईयों से रूबरू कराते मंटों की कहानियॉं दिल के अंदर तक सीधे प्रवेश करती है जिसे किसी गोष्ठी से समझा नहीं जा सकता उसे तो उसके कहानी रूप में पढा व आत्मसाध किया जा सकता है ।
अश्लीलता के लिये उनकी बहुचर्चित कहानी ‘उपर, नीचे और दरमिंयॉ’ जब मैं पढा तो एकबारगी मुझे कहानी समझ में ही नहीं आई पर हर कथोपकथन के बाद शील और अश्लील को तौलता रहा । ‘उपर, नीचे और दरमिंयॉ’ कथानक में गैर पुरूष व गैर स्त्री के बीच अंतरंग अवैध संबंधों में डूबते उतराते दिल दिमाग के बीच नौकर नौकरानी के ‘खाट की मजबूती’ चर्चा पर खत्म होती कहानी सचमुच झकझोरने वाली है । मंटों की कहानियों में यौन संबंधों व यौन प्रसंगों का सुन्दर समावेश हुआ है एवं कथानक में इनका उल्लेख मानव विद्रूपता को उधेडता अंतरात्मा को झकझोरता हुआ प्रस्तुत हुआ है ।
भारत पाकिस्तान के बटवारे व तदसमय के मारकाट व संवेदनाओं, बाल मनोविज्ञान आदि पर भी इनकी कलम चली है किन्तु मंटों पर आजादी के समय से अश्लीलता व नग्नता के आरोप लगते रहे हैं एवं वे पाकिस्तान व भारत में उर्दू अदब व हिन्दी साहित्य में बेहद विवादास्पद कथाकार के रूप में चर्चित हुए है और अदब व साहित्य की कसौटी पर सदैव खरे साबित हुए हैं । उन्होंनें स्वयं ‘मंटो’ के विषय में कहा है - ’ यह अजीब बात है कि लोग उसे विधर्मी, अश्लील व्यक्ति समझते हैं और मेरा भी ख्याल है कि वह किसी हद तक इस कोटि में आता है । इसीलिये प्राय: वह बडे गंदे विषयों पर कलम उठाता है और ऐसे शव्द अपनी रचना में प्रयोग करता है जिन पर आपत्ति की गुंजाईश भी हो सकती है । लेकिन मै जानता हूं कि जब भी उसने कोई लेख लिखा, पहले पृष्ट के शीर्ष पर 786 अवश्य मिला जिसका मतलब है ‘बिस्मिल्ला’ और यह व्यक्ति जो खुदा को न मानने वाला नजर आता है, कागज पर मोमिन बन जाता है । परन्तु वह कागजी मंटो है जिसे आप कागजी बादाम की तरह केवल अंगुलियों से तोड सकते हैं अन्यथा वह लोहे के हथौडौं से भी टूटने वाला आदमी नहीं ।‘
एक जगह वे कहते है ‘ मैं इसके पूर्व कह चुका हूं कि मंटो अव्वल दर्जे का ‘फ्राड’ है । इसका अन्य प्रमाण यह है कि वह प्राय: कहा करता है कि वह कहानी नहीं सोंचता, स्वयं कहानी उसे सोंचती है – यह भी फ्राड है ।‘ स्पष्टवादिता ऐसी कि अपने आप को फ्राड, चोर, भूठा व अनपढ कहते हुए भी कोई हिचक नहीं । अपनी शादी पर तो उन्होंनें बडा मजेदार लेख लिखा है उस समय के फिल्मी दुनिया के चकाचौंध का आपेशन करने के साथ ही मुम्बईया लेखकीय जीवन व अपनी शादी और बरबादी को बिना लाग लपेट सपाट शव्दों में बयान किया है । प्रकाशक व संपादक के द्वारा लेखक पत्रकार के शोषण की जडे गहरी हैं मंटो से लेकर आज तक कलम किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार है । मंटो की भावनाओं को मैं डा.विमल कुमार पाठक एवं श्री राम अधीर के भावनाओं के एकदम करीब पाता हूं । कोरबा के एक समाचार पत्र के प्रकाशक व चहेती व्यवस्थापिका के द्वारा छत्तीसगढ के सम्माननीय साहित्यकार व विद्वान डा. विमल कुमार पाठक जैसे सज्जन व्यक्ति का तनखा खा जाना, गाली गलौच करना एवं रायपुर के स्वनामधन्य प्रकाशकों व संपादकों के द्वारा भोपाल के लोकप्रिय कवि, पत्रकार व संकल्प रथ के संपादक श्री राम अधीर का आर्थिक शोषण के बयानों को मैं मंटो के शोषण के करीब पाता हूं और जब श्री राम अधीर रायपुर के दो संपादकों को ठग व बेईमान, एक लोक साहित्यकार को धूर्त, राजस्थान का बनिया छत्तीसगढ को लूटने आया है, कहते हैं तो आश्चर्य नहीं होता ।
लेखों में संदर्भ ग्रंथों का उल्लेख कर लेख को दमदार बनाने एवं बडे बडे वजनदार लेखकों के नामों से अपनी मानसिक क्षमता के खोखले प्रदर्शन पर वे एक जगह कहते हैं - ’वह अनपढ है – इस दृष्टि से कि उसने कभी मार्क्स का अध्ययन नहीं किया । फ्रायड की कोई पुस्तक आज तक उसकी दृष्टि से नहीं गुजरी । हीगल का वह केवल नाम ही जानता है । हैबल व एमिस को वह नाममात्र से जानता है लेकिन मजे की बात यह कि लोग, मेरा मतलब है कि आलोचक यह कहते हैं कि वह तमाम चिंतकों से प्रभावित है । जहां तक मैं जानता हूं मंटो किसी दूसरे के विचारों से प्रभावित होता ही नहीं । वह समझता है कि समझाने वाले सब चुगद हैं । दुनिया को समझाना नहीं चाहिए, उसको स्वयं समझना चाहिए ।‘
11 मई 1912 को अमृतसर में जन्में, पढाई में फिसडडी, तीसरे दर्जे में इंटरमीडियट पास ‘मंटों’ की आवारगी व मुफलिसी नें अलीगढ यूनिर्वसिटी फिर वहां से निकाल दिये जाने पर मुम्बई तक का सफर तय किया । मुम्बई में उन्होंने साप्ताहिक ‘मुसव्विर’ से पत्रकारिता के द्वारा कलम की पैनी धार को मांजना आरंभ किया फिर भारत की पहली रंगीन बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ में बतौर संवाद लेखक काम किया, फिल्मी दुनिया का सफर इन्हें रास नहीं आया यद्धपि इन्होंनें मुम्बई में अपना काफी वक्त बिताया । विभाजन के बाद ये पाकिस्तान चले गये, फैज अहमद फैज, चिराग हसन हजरत व साहिर लुधियानवी जैसे मित्रों के साथ उर्दू में लगातार लिखते रहे जिनका हिन्दी अनुवाद भारत में भी प्रकाशित होता रहा । पाकिस्तान सरकार नें इनकी कहानी ‘ठंडा गोस्त’ के लिये इन पर मुकदमा भी चलाया ये अश्लीलता व नग्नता के आरोपी बनाये गये व बाइज्जत बरी किये गये । उनकी स्वीकारोक्ति ‘ मैं आपको पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मंटो, जिस पर अश्लील लेख के विषय में कई मुकदमें चल चुके हैं, बहुत शीलपसंद हैं ।‘
शील पसंद इस अश्लील कथाकार एवं सही मायने में समाज सुधारक सआदत हसन की जयंती पर याद करते हुए आईये इनकी कहानियों पर आज फिर से चर्चा कर लेते हैं, यदि आपसे भी मंटो रूबरू हुआ हो तो टिप्पणी के द्वारा अपने विचार रखें ।
(संदर्भ : विभिन्न पत्रिकाओं में श्री देवेन्द्र इस्सर के मंटोनामा के समीक्षात्मक लेख व संकल्प रथ मार्च 2003 का अंक)
आलेख एवं प्रस्तुति - संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...