हबीब का योग्‍य शिष्‍य : अनूप रंजन पांडेय

छत्‍तीसगढी लोक नाट्य विधा तारे नारे के संरक्षक
छत्‍तीसगढ के ठेठ जडों से भव्‍य नागरी रंगमंचों तक सफर तय करने वाले रंगमंच के ऋषि हबीब तनवीर को कौन नहीं जानता उन्‍होंनें न केवल छत्‍तीसढी संस्‍कृति और लोक शैलियों को आधुनिक नाटकों के रूप में संपूर्ण विश्‍व में फैलाया वरण एक पारस की भांति अपने संपर्क में आने वाले सभी को दमकता सोना बना दिया । इन्‍हीं में से माटी से जुडा एक नाम है अनूप रंजन पाण्‍डेय जिन्‍होंने 'नया थियेटर` के साथ ही 'पृथ्वी थियेटर` मुंबई, 'सूत्रधार` भोपाल, 'रंगकर्मी` कोलकता, जैसी नाटय संस्थाओं और पदम भूषण हबीब तनवीर, ब.व.कारन्त, रतन थियम, के.एन.पन्निकर, मारिया मूलर, बी.के.मुकर्जी, उषा गांगुली, तापस सेन, बी.एम.शाह जैसे विभूतियों से जुड़कर नाटक के क्षेत्र में नित नये प्रयोग किए और रंगमंचीय अभिनय को अपनी प्रतिभा और मंजे हुए अभिनय से नई उंचाइयां दी ।
रंगमंच और अभिनय अनूप के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। जन्मजात प्रतिभा से युत श्री पांडेय विद्यार्थी जीवन में ही छत्तीसगढ़ी लोक नाटय 'नाचा` में जीवंत अभिनय कर अपनी योग्यता से स्‍थानीय कला जगत को परिचित करा दिया था इन प्रदर्शनों से इन्‍हें सराहना मिलने लगा था । प्रोत्‍साहन नें इन्‍हें इस क्षेत्र में और बेहतर कार्य करने हेतु प्रेरित किया और छुटपुट नाट्य प्रदर्शनों में ये सक्रिय हो गए । आपकी प्रतिभा में निखार एवं प्रदर्शन कला में उत्‍कृष्‍टता प्रसिद्व रंककर्मी हबीब तनवीर के 'नया थियेटर` से जुड़नें पर आई और इसके बाद लगातार प्रसिद्ध व लोकप्रिय नाटकों की सफल प्रस्तुति का निरंतर दौर चल पडा। देश के लगभग सभी मुख्य मंचों और आयोजनों के साथ-साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी अभिनय क्षमता का परचम फहराते हुए 'जिन लाहौर नई देख्या`, मुद्राराक्षस, वेणीसंहारम, मिड समर नाईटस् ड्रीम, चरणदास चोर, आगरा बाजार, देख रहे हैं नैन, ससुराल, राजरक्त, हिरमा की अमर कहानी, सड़क, मृच्छकटिकम जैसे नाटक में इनका अभिनय जिस तरह से जीवंत हुआ है वह किसी भी दर्शक के लिए अविस्मरणीय रहा है। इनके द्वारा अभिनीत भूमिकाओं को दर्शकों के साथ-साथ नाटय सुधियों, निर्देशकों और समीक्षकों द्वारा लगातार सराहना मिलती रही है।
बहुआयामी व्‍यक्तित्‍व के धनी अनूप रंजन जी का नाटकों में अभिनय के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी पकड़ और उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है, जिसमें निर्देशन, संयोजन, संगीत, गाथा और नाटय-सांस्कृतिक परम्परा आदि क्षेत्र में इनके द्वारा किए गए कार्य विशेष रूप से सराहनीय रहे हैं । देश और विश्व की लम्बी यात्राएं और प्रवास ने आपकी दृष्टि को व्यापक और उदार बनाया है।
अनूप रंजन पांडेय का जन्म एवं प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर में हुई और बिलासपुर से ही वाणिज्य के अलावा सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। रायपुर से पत्रकारिता में स्नातक तथा भोपाल से पी.जी.डिप्लोमा (सतत्शिक्षा) और इंदिरा कला एवं संगीत विद्यालय खैरागढ़ से लोक संगीत में डिप्लोमा की। अनूप रंजन जी साक्षरता के यज्ञ में राज्य संसाधन केन्द्र, भोपाल से जुड़े और लगभग ५० से अधिक नवपाठक साहित्य का संपादन किया जिसमें हिन्दी के अलावा गोंड़ी, भतरी, हल्वी, दोरली, छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रकाशित सामग्री उल्लेखनीय है। कला और संस्कृति, विशेषकर, रंगमंच, आपकी गहरी रूचि और सुदीर्घ-गहन सम्बद्धता का क्षेत्र रहा है। अपने क्षेत्र में देश की सर्वोच्च संस्था, संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली के लिए आप छत्तीसगढ़ राज्य के नामित प्रतिनिधि है। संस्था की बैठकों और गतिविधियों में शामिल होकर जहां एक ओर आपने छत्तीसगढ़ में संगीत नाटक के क्रियाकलाप को गतिशील किया है, राज्य की संगीत नाटक प्रतिभाओं के समुचित सम्मान के लिए पहल की है वहीं राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र की परम्परा और नवाचार पर अपने चिन्तन और विचारों को प्रभावी रूप में क्रियान्‍वयित कर संगीत नाटक के क्षेत्र को लाभान्वित किया है।
छत्‍तीसगढ के प्रति उत्‍कट प्रेम एवं लगाव व नाटक के संगीत पक्ष और वाद्यों की गहरी समझ रखने वाले अनूप ने छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में घूमकर पारम्परिक लोकवाद्यों का अध्ययन और संग्रह किया। इनका यह संग्रह छत्‍तीसगढ का पहला संग्रह रहा है, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल द्वारा भिलाई में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला-सह- प्रदर्शनी 'चिन्हारी` में आपका यह प्रयास रेखांकित हुआ और कला जगत के पारखियों नें इसे बहुत सराहा । इस आयोजन में आपके संग्रहित वाद्ययंत्रों की प्रदर्शनी लगाई गई जिसके माध्यम से पहली बार छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक सांगीतिक परम्परा और वाद्यों से विशेषज्ञों और आम जन का परिचय हुआ। इनकी उदारता देखिये कि इन्‍होंनें बडे श्रम से लुप्‍तप्राय वाद्ययंत्रों का सेग्रह किया पर अपना यह संग्रह स्वेच्छा से छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग के संग्रहालय को प्रदर्शन के लिए स्थायी रूप से दे दिया ताकि यहां आने वाली जनता छत्‍तीसगढ की संस्‍कृतिक परंपरा के अहम रहे इन वाद्ययंत्रों का जीवंत स्‍वरूप यहां देख सकें ।
सांस्‍कृतिक छत्‍तीसगढ के आदिम लोक परंपराओं को हृदय में बसाये हुए अनूप रंजन नें छत्‍तीसगढ के अनेक लोक नाट्य विधाओं पर कार्य किया एवं धुर गांवों में दबी छिपी इन विधाओं का प्रदर्शन नागर नाट्य मंचों पर प्रस्‍तुत किया । छत्तीसगढ़ की एक विशिष्ट और लुप्तप्राय नाटय विधा ''तारे-नारे`` को पुनर्जीवित करने का इन्‍होंने बीड़ा उठाया है एवं इसके विकास में ये लगातार संघर्षशील हैं । ''तारे-नारे`` या ''घोड़ा नाच`` नाटय विधा छत्तीसगढ़ की विशिष्ट निजता और पारम्परिकता से सम्पन्न है, जिसका कथ्य ''आल्हा`` गाथा पर आधारित है। इन्‍होंनें लुप्तप्राय इस नाटय विधा का संयोजन तथा निर्देशन किया, जिसका प्रदर्शन छत्तीसगढ़ राज्योत्सवों में किया गया। ''तारे-नारे`` के संरक्षण संवर्धन और प्रदर्शन के प्रति निष्ठा और इनके कार्य से प्रभावित होकर दक्षिण मध्य सांस्कृतिक केन्द्र नागपुर नें इनका नाम भारत सरकार के ''गुरू शिष्य`` परंपरा योजना के तहत गुरू के रूप में आपको सम्मान दिया । अत्यंत श्रमसाध्य तथा लगभग असंभव जान पड़ने वाले कार्य की चुनौती को हाथ में लेकर इन्‍होंनें रंगमंच, कला-परम्परा और संस्कृति के प्रति अपनी निष्ठा, समर्पण और गहन सम्बद्धता को प्रमाणित करते हुए ‘तारे नारे’ के विकास में निरंतर लगे हुए हैं ।
छत्‍तीसगढ के बस्‍तर के बिसरते पारंपरिक समस्‍त नृत्‍यों को एकाकार कर एक ही मंच में मूल परंपराओं को उसके मूल रूप में ही भव्‍य रंगमंच में प्रस्‍तुत करने की योजना पर इनका कार्य अभी चल रहा है । बस्‍तर के सभी पारंपरिक नृत्‍यों को जोडकर इन्‍होंनें ‘बस्‍तर बैंड’ की स्‍थापना की है । ‘बस्‍तर बैंड’ बस्‍तर के सांस्‍कृतिक पहलुओं का जीवंत चित्रण है जिसमें मूल वाद्ययंत्रों के साथ घोटुल व जगार का परिदृश्‍य है तो धनकुल के गूंज के साथ करमा का थिरकन है । अनूप नें अपने बेहतर निर्देशन व अभिनय कला से इसे सींचा है एवं अपने अनुभवों से इसे कसा है । भविष्‍य में अनूप की यह प्रस्‍तुति अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर लोकप्रिय होने के योग्‍य है ।
इन कार्यों के अतिरिक्‍त अनूप रंजन अपने आप को निरंतर निखारने एवं लोगों तक अपनी प्रतिभा बांटने हेतु अभिनय, रंगमंच और संगीत की महत्वपूर्ण कार्यशालाओं में लगातार शिकत करते रहे हैं । इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय संग्रहालय, भोपाल, संस्कृति विभाग, रायपुर, संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली, संस्कृति विभाग, सिक्किम आदि के कार्यक्रमों एवं कार्यशालाओं में भी निरंतर सहभागी रहे हैं । एसोसिएशन ऑफ इंडियन युनीवर्सिटीस्, दिल्ली तथा नेहरू युवा केन्द्र (खेल एवं युवा मंत्रालय) भारत सरकार के युवा उत्सव आयोजन में विशेषज्ञ एवं जूरी सदस्य के रूप में भी इन्‍होंनें युवाओं को प्रोत्साहित किया है व विभिन्न संस्थाओं- बालरंग, बिलासा कला मंच, चित्रोत्पला लोककला परिषद्, चिन्हारी, जन शिक्षा एवं संस्कृति समिति, अभिव्यक्ति भोपाल आदि से सम्बद्ध रह कर नाटय कला गतिविधियों में आज तक सतत् संलग्न हैं।
नाटय कला के विभिन्न पक्षों-अभिनय, संगीत, वैचारिक चिन्तन, संगठन, प्रशिक्षण के साथ परम्परा और प्रयोग का संतुलित समन्वय आपकी सुदीर्घ कला साधना में परिलक्षित होता है। कला-संस्कृति के ऐसे तपस्वी को अनेक सम्मान,व पुरस्‍कार प्राप्‍त हुए हैं । अनूप रंजन जी मानते हैं कि उनको इस आयाम तक पहुचाने में हबीब तनवीर जी का अहम योगदान है, आज वे जो भी हैं वह हबीब जी के कारण ही हैं । अनूप रंजन के हबीब तनवीर के प्रति सच्‍ची श्रद्धा एवं सर्मपण के भाव एवं उनकी उर्जा, छत्‍तीसगढ की माटी के प्रति लगाव को देखते हुए मन को सुकून मिलता है कि अनूप रंजन जी सचमुच में हबीब तनवीर के सच्‍चे शिष्‍य है और छत्‍तीसगढ में उनकी परम्‍परा को जीवंत रखने वाले योग्‍य ध्‍वजवाहक ।

संपर्क : Anup Ranjan Pandey Chinhari ART Village Vidyanagar Bilaspur 9425501514,  anupranjanpandey@indiatimes.com

.

.
छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...