मेरी अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं : प्रेम साइमन का विरोध

विश्व रंगमंच दिवस पर नेहरू सांस्कृतिक सदन सेक्टर-१ में शनिवार को तीन नाटकों का मंचन किया गया। भिलाई के रंग कर्मियों और क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक समूह बीएसपी के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में नाटकों का मंचन कर रंगकर्मियों ने दर्शकों को संदेश दिया। इस मौके पर इप्टा द्वारा रमाशंकर तिवारी, श्रीमती संतोष झांझी और चंद्रशेखर उप्पलवार का सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में प्रोफेसर डीएन शर्मा और वरिष्ठ साहित्यकार रवि श्रीवास्तव विशेष रूप से उपस्थित थे। इस मौके पर बालरंग द्वारा अदालत, आह्वान संस्था द्वारा विरोध और वयम द्वारा नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी गई। छत्तीसगढ़ के प्रख्यात नाटककार स्व. प्रेम साइमन द्वारा लिखे गए नाटक "विरोध" की प्रभावी मंचन किया गया। इसमें खोखले विरोध, दिशाहीन विरोधियों और उनका एक सूत्रीय मुद्दा सत्ता हथियाना दिखाया गया। ये लोग बिना किसी मुद्दे के अपनी लड़ाई लड़ते हैं और छोटी से छोटी हड्डी देखकर तलवे चाटने लगते हैं। सर्वहारा को अंधे भिखारी के रूप में दिखाया गया जो पहले तो विरोधियों का साथ देता है लेकिन उनकी असलियत देख उससे अलग हो जाता है। सत्ता, अंधे के विरोध को विद्रोह के स्वर में बदलने से पहले ही दबा देना चाहती है। नाटक के अंत में इस पूरे घटनाक्रम को देख महात्मा गांधी की प्रतिमा सजीव हो उठती है और अपने पूरे दर्शन शास्त्र को बदलते हुए शोषित वर्ग को ही अपनी लाठी पकड़ाते हुए कहते हैं "मेरी अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं हैं" इसी सूत्र वाक्य के साथ नाटक का समापन होता है।
"विरोध" के नाट्य निदेशक भिलाई के रंगकर्मी यश ओबेराय थे, प्रदीप शर्मा ने अंधे भिखारी, अनिरुद्ध श्रीवास्तव ने मोची तथा वाजिद अली, विजय शर्मा, टी सुरेंद्र ने विरोधियों, सुरेश गोंडाले ने हवलदार, श्रीमती शरदिनी नायडू ने नेता की भूमिका निभाई, गांधी हरजिंदर मोटिया बने थे।
नाटकों के मंचन के पूर्व विश्व रंगमंच दिवस पर आयोजित एक गोष्‍ठी में इप्टा के मणिमय मुखर्जी ने विश्व रंगमंच दिवस पर संदेश का पठन किया। यह संदेश इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट द्वारा प्रेषित किया गया था जो कि यूनेस्को की एक इकाई है। ब्रिटिश अभिनेत्री एम जूडी डैंच द्वारा अंग्रेजी में भेजे संदेश का श्री मुखर्जी ने हिंदी में अनुवाद कर वाचन किया। उन्होंने कहा कि विश्व रंगमंच दिवस नाटक के अनगिनत रूपों को मनाने का मौका है। रंग मंच मनोरंजन व प्रेरणा स्रोत है और उसमें सारी दुनिया की विविध संस्कृतियों तथा जनगणों को एकताबद्ध करने की क्षमता है। लेकिन रंगमंच इसके अलावा भी बहुत कुछ है। नाटक सामूहिक कर्म से जन्म लेता है।
इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी यश ओबेराय ने कहा कि भिलाई में रंगमंच पर बच्चों के लिए ज्यादा से ज्यादा काम होना चाहिए। थिएटर वर्कशॉप करने से रंगमंच के प्रति लोगों का रूझान बढ़ेगा। श्री ओबेराय का कहना था कि रंगमंच का कोई विकल्प नहीं है। रंगमंच जो संतुष्टि दर्शक व कलाकार को देता है उसकी कोई दूसरी विधा नहीं है। रंगमंच समाज का आइना है और यह विधा कभी समाप्त नहीं हो सकती। छत्तीसगढ़ में ढाई हजार साल पुरानी नाट्य शाला मौजूद है, पुराना इतिहास है। रंगमंच के क्षेत्र में भिलाई का अहम योगदान है।
विश्व रंगमंच दिवस पर नेहरू सांस्कृतिक सदन सेक्टर-१ में आयोजित इस संपूर्ण कार्यक्रमों में हमारे ब्‍लागर साथी बालकृष्‍ण अय्यर जी भी उपस्थित थे एवं उन्‍होंनें भी रंगमंच पर अपने विचार रखे.

मैं हमेशा की तरह नेहरू सांस्कृतिक सदन सेक्टर-१ थियेटर के अंतिम पंक्तियों के कुर्सी में बैठे इस कार्यक्रम का लुफ्त उठाता रहा.
'विरोध' के अंतिम दृश्‍यों के पूर्व ही घर से श्रीमतीजी का फोन आया. कि पहले घर बाद में समाज और फिर देश की चिंता कीजिए. सुबह 9 से रात के 9 बजे की ड्यूटी के बीच भी 'नौटंकी' और साहित्‍य के लिए समय चुरा लेते हो पर घर के लिये समय नहीं होता. इस उलाहना मिश्रित विरोधात्‍मक फोन आने पर मैं 'गृह कारज नाना जंजाला' भुनभुनाते हुए बिना मित्रों से मिले झडीराम सर्वहारा बनकर दुर्ग अपने घर आ गया.

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...