छत्तीसगढ़ के समाचारों की सुर्खियों में पिछले दिनों से एस्सार के नक्सली सहयोग की समाचारें प्रमुखता से प्रकाशित हो रही हैं। रोज इस संबंध में कुछ ना कुछ छप रहा है और इस वाकये की तह में क्या है यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। समाचार के मूल में यह है कि 11 जनवरी 2010 को विकीलिक्स नें खुलासा किया था कि छत्तीसगढ़ के नक्सलियों को एस्सार द्वारा अपने कार्य को सुचारू रूप से चलाने एवं दखल ना देने के लिए नक्सलियों को भारी मात्रा में मुद्रा दिया जाता है साथ ही यह भी जानकारी दी गई थी कि नक्सलियों को फिलिपीनों विद्रोहियों एवं एलटीटीई के द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद से ही छत्तीसगढ़ पुलिस एस्सार और नक्सलियों के बीच के संबंधों को खंगालने में लगी थी।
बहुराष्ट्रीय कम्पनी एस्सार का किरंदुल, बस्तर के पास 80 लाख सालाना क्षमता वाला लौह अयस्क परिष्कार संयंत्र है। यहां से लौह अयस्क तरल रूप में 267 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन के द्वारा विशाखापट्टनम में स्थित कम्पनी के ही पैलेट संयंत्र में जाती है। विशाखापट्टनम में एस्सार की 8 मिलियन टन स्पात उत्पादन क्षमता की एक इकाई स्थापित है। बस्तर की कीमती लौह अयस्कों को कम्पनी कौड़ी के मोल लेकर विशाखापट्टनम ले जाती है, बस्तर से विशाखापट्टनम तक का यह सफर घने जंगलों और धुर नक्सल इलाके से होकर पूरा होता है। एस्सार द्वारा यहां द्वारा बिछाया गया पाईप लाईन दुनिया की दूसरे क्रम की सर्वाधिक लम्बी पाईप लाईन है इस पाईप लाईन को बिछाने से लेकर सुविधापूर्वक संचालन के लिए एस्सार को नक्सलियों को निरंतर पैसे देने पड़े हैं। पिछले वर्ष नक्सलियों के द्वारा बस्तर से लगे उडीसा के चित्रकोंडा इलाके में इस पाईप लाईन को विष्फोट से उडा दिया गया था, उस समय लोगों का कहना है कि इसे उडाने में नक्सलियों और किसी ट्रांसपोर्टर का हाथ है। पाईप लाईन के फूटने पर ट्रांसपोर्टरों की बन पड़ी थी और लौह अयस्क ट्रकों के द्वारा ढोया जाने लगा था। यद्धपि नक्सलियों के द्वारा समय समय पर लौह अयस्क की ढ़ुलाई करते ट्रकों को जलाया गया और ढुलाई बंद रखने को कहा गया किन्तु दो-चार दिनों के विराम के बाद पुन: ढुलाई चालू हो गई। अयस्कों की ज्यादातर ढुलाई ठेकेदार बी.के.लाला के ट्रकों के द्वारा ही किया गया और ज्यादा मात्रा में इसी के ट्रकों को नक्सलियों नें फूंका भी।
एस्सार को बस्तर से लौह अयस्क को पाईप लाईन के द्वारा विशाखापट्टनम ले जाने के लिए लगभग साढ़े चार लाख क्यूसेक पानी की आवश्यकता पड़ती है। यह पानी बस्तर के कोंख से निकाल कर समुद्र में व्यर्थ बहा दी जाती है, अयस्क के साथ ही बस्तर का पानी भी लूट लिया जाता है। यदि इस पाईप लाईन के बदले ट्रकों से अयस्क की ढुलाई होती तो ये पानी बचता और स्थानीय लोगों को कुछ अतिरिक्त रोजगार मिल पाता। किन्तु कम्पनी द्वारा परिवहन की लागत से बचने वाले बड़े मुनाफे में नक्सलियों को हिस्सेदारी दे दी जाती है और स्थानीय लोग ठगे रह जा रहे हैं। स्थानीय लोगों को रोजगार की मांग यहां के राजनैतिक नेता लोग करते रहे हैं किन्तु खानापूर्ती के अतिरिक्त स्थानीय लोगों को रोजगार कभी भी दी नहीं गई है सिर्फ मूर्ख बनाया गया है।
प्रकाशित समाचारों के अनुसार विगत 9 सितम्बर को पालनार इलाके के साप्ताहिक बाजार से एक ठेकेदार बी.के.लाला एवं लिंगाराम कोड़ोपी को पुलिस नें 15 लाख रूपये नगद के साथ गिरफ्तार किया उस समय गाड़ी में उपस्थित महिला सोनी सोढ़ी भाग गई। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि ठेकेदार ने साफ तौर पर स्वीकार किया है कि प्रतिबंधित संगठन को पैसा देने के लिए यह रकम एस्सार कंपनी नें दिया है। पुलिस अधीक्षक अंकित गर्ग के द्वारा खुलासा किये जाने के बाद यह स्थानीय एवं राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समाचारों की सुर्खियां बनके छा गई। लिंगाराम कोड़ोपी और सोनी सोढ़ी पंद्रह लाख लेकर दरभा कमेटी के नक्सली विनोद और रघु को सौंपने वाले थे। विनोद और रघु बाजार से लगभग तीन किमी दूर उनका इंतजार कर रहे थे। पुलिस की भनक लगते ही विनोद और रघु भाग गए।
गिरफ्तार लिंगाराम कोड़ोपी के समर्थन में बस्तर में जय जोहार नाम का संगठन चलाने वाले और बहुचर्चित गांधीवादी हिमाशु कुमार के साथ छत्तीसगढ़ शासन के प्रति हरेक सांस में आग उगलने वाले प्रशांत भूषण एवं नक्सलियों को छोड़कर संपूर्ण छत्तीसगढ़ को शोषक समझने वाली बुकर विजेता अरूंधती राय सामने आये हैं और रोज इनके कुछ ना कुछ बयान आ रहे हैं। तथाकथित रूप से रूपयों की डिलीवरी लेने वाला लिंगाराम कोडेपी कोई आंडू पांडू व्यक्ति नहीं है वह कई बड़े मीडिया ग्रुप को बस्तर की स्थानीय भाषा में सहयोग करने वाला अहम व्यक्ति रहा है। उसे पिछले वर्ष पुलिस नें मावोवादी होने का आरोप लगाते हुए लगभग 40 दिन तक गैरकानूनी रूप से अपने हिरासत में रखा था और उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद उसे छोड़ा गया था। लिंगाराम दिल्ली के किसी प्रतिष्ठित पत्रकारिता अध्ययन शाला में पत्रकारिता के गुर सीख रहा है। लिंगाराम के गैरकानूनी हिरासत के संबंध में पिछले दिनों सभी बड़े मीडिया समूहों नें समाचार प्रकाशित किए थे जिसमें लिंगाराम अपने प्रिय स्वामी अग्निवेश के साथ पत्रकारों को संबोधित करते नजर आए थे। इस वाकये में आये सोनी सोढ़ी नाम की महिला बस्तर के किसी आश्रम शाला में प्राचार्य है और लिंगा की चाची है, उसके भी वीडियो और बयान समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए थे जिसमें उन्होंनें पुलिस पर ज्यादती के आरोप लगाए थे।
समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार बी.के.लाला नें यह दलील भी दी कि जब उसकी 18 लाख की गाडियों को नक्सलियों नें आग के हवाले कर दी तब नक्सलियों नें उससे फोन पर संपर्क किया। यह भी हो सकता है कि गाडि़यां जलाने के पूर्व उससे रकम वसूली के लिए फोन आये हों। पुलिस के मुताबिक लाला नें लगातार नक्सलियों से बातचीत की है, लगभग एक प्रकार से संपर्क निरंतर बनाए रखा है। एस्सार और नक्सलियों के बीच लायजनिंग का काम मुख्यतया बी.के.लाला नें ही किया है। एस्सार को बस्तर से लौह अयस्क लूटना था और नक्सलियों को इसके एवज में पैसे चाहिए थे, लाला को दलाली चाहिए थी और बस्तर के कुछ तथाकथित आदिवासियों को अपने ही बस्तरिहा भाईयों के प्रति गद्दारी करनी थी।
वर्तमान परिस्थितियों से यह स्पष्ट हो गया है कि लंगोटी धारी आदिवासियों के हक से जल-जंगल-जमीन छीनकर एस्सार और टाटा जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी अपना धन का भंडार निरंतर भर रही है। आदिवासियों के हक के लिये हथियार उठाने वाले तथाकथित नक्सली भी अब स्वयं पैसे के एवज में आदिवासियों के आबरू को बहुराष्ट्रीय कम्पनी से लुटवा रहे हैं। एक तरफ वे भोली जनता को बहुराष्ट्रीय कम्पनी और शोषक वर्ग के विरोध में भड़का कर हथियार उठाने को मजबूर कर रहे हैं और दूसरी तरफ शोषक वर्ग के कंधे में कंधा मिलाकर उनसे पैसा वसूल रहे हैं। बस्तर व देश के अन्य हिस्से में हो रहे शोषण, भ्रष्टाचार और कमजोर वर्ग के प्रति अत्याचार के विरूद्ध मुखर होने का ढ़ोंग रचने वाले इन लोगों नें नक्सलबाड़ी से उठे आन्दोलन के उद्देश्यों को भुला दिया है। अब यह संगठन पूर्णतया वसूली उगाही का संगठन बन कर रह गया है जो जनता के प्रति जुल्म कराने की छूट देने के एवज में जुल्म करने वालों से पैसा वसूलती है। जंगल में जनता मूर्ख बनकर इन्हें अपना आका मानती है और ये समय-समय पर आदिवासियों के पीठ में छूरा भोंकते रहते हैं। अपने मतलब के लिये पुलिस से लड़वाते हैं और पैसा वसूली हो जाने पर आदिवासियों को लंगोटी के हाल में छोड़कर पुलिस का दबाव का बहाना बनाते हुए उन्हें उनकी ही हाल पे छोड़ खसक जाते हैं। उगाही का यह पैसा जंगलों से शहरों के आरामगाहों तक पहुचता है और यह तथाकथित वाद एक मजाक के सिवा कुछ नहीं रह जाता।
ट्रांसपोर्टर लाला के खबर के साथ ही मुझे पिछले वर्ष की एक घटना याद आ रही है। किरंदुल के परिवहन व्यवसाय में रोजगार कर रहे लगभग पच्चीस-तीस लोगों से मेरा पिछले वर्ष सामना हुआ था। दुर्ग से बिलासपुर साउथ बिहार एक्सप्रेस के स्लीपर बोगी में टीटीई और बिहार के कुछ नौजवानों के बीच नोकझोंक हो रही थी। रायपुर से भाटापारा तक हो रहे इनके नोकझोंक को मैं दो बोगियों में आते जाते हुए सुनते रहा। टीटीई का कहना था कि दो बोगियो में एक जैसे नाम के लगभग तीस सीट बुक हैं, तुम लोगों नें कुछ ना कुछ तो फर्जी किया है मुझे सही आईडी बतलाओ किन्तु उनके पास कोई सही आईडी नहीं था। ड्राईविंग लायसेंस पर टीटीई को शक था क्योंकि लायसेंस पुराना था और फोटो एवं नाम धुंधले पड़ गए थे। बात बढ़ते देखकर उन्हीं में से एक लड़का सामने आया और अपने आप को एक प्रतिष्ठित टीवी मीडिया का पत्रकार बतलाते हुए टीटीई पर धौंस जमाने लगा। खैर मामला जैसे तैसे निबटा क्योंकि लायसेंस फर्जी थे यह स्पष्ट था जिसमें फोटो सहीं लगे थे उसका नाम कुछ और था टीवी पत्रकार दलील देता रहा कि उसका नाम सर्टिफिकेट में 'अ' है बोलचाल में 'ह' है आपने पूछा तो वह हड़बड़ा कर अपना नाम 'ह' बता रहा है। यह किस्सा बिल्हा तक चलते रहा और प्रथम दृष्टया दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर टीटीई को उन्हें सफर करने की अनुमति देनी पड़ी।
हमने कुछ और जानकारी उन लड़कों से लेनी चाही तो पता चला वे लौह अयस्क की ट्रक में ड्राईवर क्लीनर है। किरंदुल से विशाखापट्टनम चलते हैं, ट्रक ही उनका घर है। नक्सल इलाकों में काम करने से डर नहीं लगता पूछने पर उनका कहना था कि वे हमें कुछ नहीं करते, ट्रक मालिक पैसा देता है इस कारण उसका ट्रक बिना बाधा के चलता है ... अभी मालिक ने पैसा नहीं दिया इसलिये उसकी ट्रकें जला दी गई है ... और हम लोग नया ट्रक आते या जली ट्रकों के बनते तक खाली हैं ... इसलिये कम्पनी नें हमें छुट्टी दे दिया है। टीवी पत्रकार से उसके संबंध में पूछने पर पहले वह बिहारी अंदाज में उडता रहा, पहले अपने आप को पत्रकार, फिर कैमरामैंन फिर असिस्टेंट फिर कैमरामैन का मोटरसाईकल चालक के रूप में अपने आप को स्वीकार किया, उसे अपनी औकात इसलिये बतलानी पड़ी कि हम बस्तर में काम कर रहे टीवी पत्रकारों के संबंध में उससे पूछने लगे और उसे लगने लगा कि अब उसकी पोल खुल जायेगी तो बतलाया कि वह कभी कभार मोटर सायकल चलाता है और टीवी वालों के लिए फोकस पकड़ता है, उनके लिये चाय गुटका लाता है। बात करते करते हमारा स्टेशन आ गया और हम बिलासपुर में उतर गए।
कभी इस घटना को किसी से जोड़ने का प्रयास नहीं किया हॉं एक बात जरूर बाहर निकल कर आई कि विशाखापट्ठनम के पोर्ट एरिया में हजारों टन अनक्लेम्ड पड़े लौह अयस्कों के खेल में इन ट्रांसपोर्टरों का बहुत बड़ा हाथ है। विशाखापट्ठनम के पोर्ट एरिया से लौह अयस्क विदेश निर्यात भी किये जाते हैं। ऐसे छोटे निर्यातक जिनके पास अयस्क निर्यात का लायसेंस है और वे नियमित रूप से खदानों से माल नहीं खरीद पाते। वे ऐसे माल की तलाश में रहते हैं जो लूप के सहार उन्हें मिल जाए। इधर उधर से फर्जी दस्तावेज तैयार कर वे इसे विदेशों में निर्यात कर सकें। हकीकत के नजदीक की संभावनाओं में ये माल इन्हें बस्तर के खदानों के आस-पास चोरी से संग्रहित किये गए एवं नक्सली उत्पात में बिखर गए एवं बाद में पोर्ट एरिया में लाए गए माल होते हैं। ऐसी भी स्थिति होती होगी जब नक्सलियों के द्वारा पचास-पचास ट्रकों को जला दिया जाता हो और इन्हें फिर से लोडिंग किया जाता है तो कम्पनी को माल कम मिलता है बीच में कुछ ट्रक मालों की अफरा तफरी भी हो जाती है। इस खेल में ट्रांसपोर्टर और छोटे निर्यातक बढि़या रकम बनाते हैं और बस्तर का अयस्क बड़े छोटे व्यवसायियों से ऐसे ही लुटता रहता है।
आज जब लाला की खबर से रोज समाचार रंग रहे हैं तो याद आ रहे हैं वे ड्राइवर और क्लीनर। उनकी स्वीकारोक्ति थी कि ट्रक चलाने के लिये मालिक नोट देता है और उसके ट्रकों को कोई भी नहीं रोक सकता, नोट नहीं देने के कारण या कोई गलतफहमी के कारण ही मालिक की ट्रकें फूंकी गई। पुलिस के अनुसार लाला नें यह स्वीकार किया है कि वह 15 लाख रूपये मावोवादियों को देने जा रहा था किन्तु उसके साथ गिरफ्तार लिंगाराम इसे स्वीकार नहीं कर रहा है। हैं। लिंगाराम के हितचिंतकों का कहना है कि लिंगा को बेवजह फंसाया गया है। जिस जगह में पुलिस उन दोनों को गिरफ्तार करना बता रही है वहां से उन्हें नहीं पकड़ा गया है बल्कि उन्हें अलग-अलग स्थानों से पकड़ कर झूठी कहानी गढ़ी जा रही है। अब हकीकत क्या है ये अंकित गर्ग जी जाने एवं मानवाधिकारवादी जाने।
लिंगा और सोनी वास्तविक अपराधी हैं या नहीं यह तो न्यायालय तय करेगी किन्तु इस वाकये से ये बात तो खुल कर समने आ गई है कि एस्सार जैसी कम्पनियां एक तरफ शासन के साथ मिलकर माओवाद के खात्में की वकालत करती है दूसरी तरफ माओवाद को बढ़ावा देनें के लिए उन्हें सहायता करती है। बस्तर के जानकारों का कहना है कि बस्तर में काम करने वालों की यह मजबूरी है चाहे वे उद्योगपति हों, व्यवसायी हो, सरकारी अधिकारी हों या नेता हो बस्तर में सांस लेने का टैक्स उन्हें देना पड़ता है। बस्तर की अकूत सम्पत्ति को लूटने के एवज में लेवी उन्हें देना पड़ता है जो बस्तर के आदिवासियों के हक के झंडाबरदार हैं। पिछले दिनों पकड़ाए एक नक्सल नेता की माने तो मावोवादियों का सालाना वसूली लक्ष्य छत्तीसगढ़, झारखण्ड बिहार के लिए 5000 करोड रूपये है। यदि यही राशि आदिवासियों को सीधे मिल जाए तो क्उन्हें चिकित्सा, शिक्षा व रोजगार के लिए खून की आंसू बहाना नहीं पड़ेगा। इस पैसे में से आधा मावोवादियों के एशो आराम और कैम्पेनिंग में और आधा दहशत फैलाने के एवज में खर्च दिया जाता है। अब बताये आदिवासियों का सबसे बड़ा शोषक कौन हुआ, नक्सल के नाम पर आदिवासियों का शोषण करते इन लोगों को आप क्या कहेंगें ... क्या यही है आदिवासियों के असल झंडाबरदार ....
संजीव तिवारी
संजीव तिवारी
लिंगा के संबंध में जनज्वार में हिमाशु कुमार की रिपोर्ट
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