ढ़ोलकल: बस्तर का रहस्य


मनुष्य सदैव रहस्य की खोज में रहता है, उसकी उत्सुकता रहस्यों को निरंतर उद्घाटित करने की रहती है. रहस्य की परतें, परत दर परत जब खुलती है तो सीधे सपाट घटनाओं में भी रोचकता बढ़ती जाती है. पौराणिक आख्यानों में नागों के संबंध में भी ऐसे ही रहस्यमय घटनाओं का उल्लेख आता है. नाग लोक, वासुकी, तक्षक, शेष नाग, इच्छाधारी नाग नागिन जैसे रहस्यमयी नागो की कथायें हमें रूचिकर लगती है. राजीव रंजन प्रसाद द्वारा रचित एवं पिछले माह प्रकाशित उपन्यास ‘ढ़ोलकल‘ हमारी इसी रूचि को बढ़ाती है.

‘ढ़ोलकल‘ बस्तर के नाग शासकों पर केन्द्रित उपन्यास है, बस्तर में नाग शासकों का एक वैभवशाली अतीत रहा है. बस्तर में यत्र तत्र बिखरे पुरावशेष आज भी समृद्ध नागों के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं. जिसके बावजूद बस्तर के नागों को लगभग बिसरा दिया गया है. ‘ढ़ोलकल‘में बस्तर के नाग शासकों के इसी विस्मृत काल का चित्रण करते हुए लेखक नें पौराणिक व ऐतिहासिक घटनाओं को अपने चितपरिचित कथात्मक शैली में पिरोया है. इस उपन्यास में नागो से जुड़े मिथकों तथा ऐतिहासिक तथ्यों का सुन्दर समन्वय है. राजीव रंजन प्रसाद जी नें इस उपन्यास में यथार्थ और कल्पना का एक रहस्यमय लोक तैयार किया हैं. उपन्यास के शब्द दर शब्द और पृष्ट दर पृष्ट नागों की जीवन शैली एवं उनके सांस्कृतिक-राजनैतिक इतिहास को राजीव नें ऐसा बिखेरा है कि एक बार पढ़ना आरंभ करने के बाद आप उसे अंत तक पढ़े बिना नहीं रह सकते.

‘ढ़ोलकल‘ उपन्यास की मूल कथा के अनुसार वारंगल से अपने राज्य विस्तार के हेतु से बस्तर की ओर बढ़ते चालुक्य वंशी राजा अन्नमदेव, नाग शासक हरिश्चन्द्र देव के चक्रकोट किले पर आक्रमण करता है. वृद्ध नाग शासक पिता के युद्ध में आहत होने के कारण नाग राज कुमारी चमेली बाबी अन्नमदेव से युद्ध करती है. अन्नमदेव उसकी वीरता एवं सौंदर्य से आकर्षित होता है किन्तु वीरांगना चमेली बाबी प्रणय निवेदन व पराजय स्वीकार करने के बजाए आत्मदाह कर लेती है. इसी घटना को आधार लेते हुए लेखक नें नागों के इस गौरव गाथा को विस्तारित किया है. पौराणिक दंत कथाओं, आख्यानों, मिथकों एवं इतिहास को आधार बनाते हुए नागों से संबंधित सभी संदर्भों को लेखक नें इस उपन्यास में स्थान दिया है. जिसमें कश्यप ऋषि की पत्नी विनीता व कद्रु से आरंभ नाग वंश, रामायण कालीन व महाभारत कालीन नागों का उल्लेख एवं ऐतिहासिक नागवंश के प्रत्येक महत्वपूर्ण घटनाओं व पात्रों को समाहित किया है. उपन्यास में नागों के संबंध में संदर्भ का उल्लेख एवं घटनाओं का कथात्मक विस्तार लेखक के गहन शोध को दर्शाता है. उपन्यास में संदर्भों एवं घटनाओं में लयात्मकता है, कथा का प्रवाह अद्भुत रोचकता के साथ अविरल है.

अजेय बस्तर की राज कुमारी चमेली बाबी को सलाम सहित, राजीव रंजन प्रसाद जी को मै बस्तर के नाग शासकों की गौरव गाथा के अभूतपूर्व सृजन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं.

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...