बस्तर : घोटुल

लिंगो पेन के भावनाओं के घोड़े
थम से गए है
जम गए हैं खदानों से उड़ते धूल
अट्ठारह वाद्यों में
गुम गए है आख्यान
आदिम गीतों में
शहर के पगधूलि नें कर
दिया है अपवित्र
पवित्र घोटुल को
प्रकृति का स्वर्गीय आनन्द
जहॉं अब कोई नहीं पाता.
अब चेलिक और मोटियारी
हाथों में हाथ ले
नहीं गाते रेला
नहीं उठते पैर
नृत्य के लिए
बेलौसा नहीं सिखाती प्यार
सरदार नहीं लगाता कोई जुर्माना
अब मुरिया बच्चों के लिए
खुल गए हैं स्कूल
जहॉं मास्टर नहीं आता.

... तमंचा रायपुरी

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...