रविन्द्र गिन्नौरे : सहज सरल व्यक्तित्व

पिछले दिनो मेरी मुलाकात छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र गिन्नौरे जी से हुई, मैं उनसे कभी मिला नहीं था। रविंद्र गिन्नोरे जी के नाम से मेरा आरंभिक परिचय दैनिक भास्कर के परिशिष्ट सबरंग के साहित्य संपादक के रूप में था। बाद में उनका नामोल्लेख साहित्यिक और पत्रकारिता मंचों में ससम्मान होते पढ़ते सुनते रहा हूॅं। मेरी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार रविंद्र गिन्नौरी जी छत्तीसगढ़ के एसे वरिष्ठ पत्रकार हैं जिंहोने छत्तीसगढ़ के बहुत सारे समाचार पत्रों मे बतौर संपादक कार्य किया है। छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ लेखन में उनका बड़ा योगदान है और उनकी किताबें छत्तीसगढ़ को असल रूप में प्रतिबिंबित करती हैं। लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी ग्लेमराइज्ड छवि मेरे जेहन में बसी थी। भाटापारा में जब सहज और बेहद सरल रविन्द्र गन्नौरे जी से मुलाकात हुई तो एकबारगी मुझे विश्वास नहीं हुआ। जब उन्होंने आत्मीयता से मुझे स्नेह दिया और अपने घर चलने का निमंत्रण दिया तो समय की कमी के बावजूद मैं उनके साथ उनके साथ हो लिया। उनके साथ बात करते हुए उनके संबंध में जो कुछ मैं जान सका वह उनके व्यक्तित्व का एक छोटा सा पहलू है, फिर भी मैं उसे मित्रों से बाटना चाहता हूं।

रविन्द्र जी का घर एक जीवंत पुस्तकालय है, दुर्लभ किताबों के साथ ही उनके पास सभी विधा के नये पुराने लेखकों की किताबें, साहित्य, कला, संस्कृति व सामयिक पत्रिकायें हैं। वे अपने घर आने वालों को हमेशा किताबें भेंट स्वरूप देते हैं। किताबों के बीच उनके द्वारा लिखे जा रहे अलग अलग विषयों के फाइलें भी ढेरों व्यवस्थित रखे हैं।

रविन्द्र जी नें लेखन का आरम्भ व्यंग्य कालम लेखन से किया फिर वे फीचर लेखन के साथ ही फ्रंट लाइन पत्रकारिता में आ गए। इस बीच उन्होंने पुरातत्व, साहित्य, इतिहास, नृतित्व शास्त्र, पर्यावरण और विज्ञान पर लगातार लेखन किया। बहुआयामी लेखन करते हुए वे वर्तमान मे पर्यावरण उर्जा टाइम्स के संपादक हैं एवं छत्तीसगढ की लोक कथाओं और छत्तीसगढ़ के शक्ति स्थलों पर किताब लिख रहें हैं।

इन किताबों के संबंध में चर्चा करते हुए रविन्द्र गिन्नोरे जी बताते हैं कि, उन्हें छत्तीसगढ के शक्ति स्थल के सम्बन्ध में खोज करते हुए अनेक रोचक और चौकाने वाले तथ्य मिले। पूजन पदधति एवं परंपरा, मान्यता और किवदंतियों के संकलन में कहीं एतिहसिक कड़ियाँ जुडी तो कहीं कपोल कल्पना नजर आयी। छत्तीसगढ़ के शक्ति स्थलों पर उनके द्वारा लिखी जा रही किताब पर जब मेरी चर्चा हुई तो उन्होंने विस्तत चर्चा की और कुछ विशेष खुलासे किए।

उन्होंने छत्तीसगढ़ मे एक योनी पीठ होने के सम्बन्ध में बताया, भग्नावस्था में उपलब्ध इस योनि प्रतिकृति का आकर लगभग 2 बाई 2 है। कल्पना कीजिये यदि यह मूर्ति अपने वास्तविक आकार में होती तो यह कितनी विशाल होती। आगे वे बस्तर की एक देवी मंदिर का उल्लेख करते हैं जो साल मे सिर्फ एक दिन ही खुलता है जहाँ पुत्र प्राप्ति के लिए कामना की जाती है। मान्यता है कि यहाँ के आशीर्वाद से महिलाओं की गोद अवश्य भरती है। लोक मान्यता पर विशेष बल देने के प्रश्न पर वे कहते हैं कि, लोक मान्यता तथ्यों की समीक्षा नहीं करती वो तो अपने आस पास के जीवन व वाचिक परम्परा का अनुसरण करती है। इसका उदाहरण देते हुए वे छत्तीसगढ़ मे प्रचलित बहादुर कलारिन का उल्लेख करते हैं कि बहादुर कलारिन की मूर्ति मूलतः अष्टभुजी दुर्गा की मूर्ति है। लोक मान्यता के आधार पर इसे बहादुर कलारिन के रुप मे पूजा जाता है।

बातों बातों में वे दंतेश्वरी माता और संत घासीदास के सम्बन्ध में एक लोक प्रचलित कथा का उल्लेख करते हैं। जिसमे माता दंतेश्वरी के मंदिर मेँ धर्म ध्वजा फहराते घूमते घासीदास जी को बलि के लिए पकड़ कर लाया गया। बलि के पूर्व जब संत घासीदास की ईश्वरीय शक्ति का भान माता दंतेश्वरी को हुआ तब दंतेश्वरी माता ने उनकी बलि स्वीकारने से मना कर दिया। बलि की पूरी तयारी हो चुकी थी, ऐसी स्थिति मेँ वहाँ विराजमान भैरव ने विरोध जताया। भैरव के विरोध पर दंतेश्वरी माता क्रोधित हो गई। भैरव फिर भी नहीँ माना तब दंतेश्वरी माता ने भैरव को लात मारा। भैरव दूर नदी के उस पार जा गिरा। इसी समय से भैरव नदी के उस पार स्थित है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर व मैदानी इलाके के लगभग 160 शक्ति स्थलों पर स्वयं जाकर सामाग्री इकत्रित करने व उनका विश्लेषण करने का काम वे अब तक कर चुके हैं एवं यह क्रम निरंतर जारी है। रविन्द्र जी देश के अनेक प्रतिष्ठित साहित्य पुरस्कारों के जूरी मेम्बर भी हैं। पुरातत्व पर उनकी एक महत्वपूर्ण किताब बहुचर्चित हुई। पुरातत्व पर इनके कइ शोध पत्र देश विदेश के शोध पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। पर्यावरण विषयों पर विभिन्न पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित हुए हैं, मुनिस्‍पल एण्‍ड हास्पीटल वेस्ट मैनेजमैंट पर उनकी एक अंग्रेजी में किताब आई है। इनकी लिखी एक किताब बाटनी पर कुछ महाविद्यालयों के पाठयक्रम में पढ़ाई जाती है। छत्तीसगढ़ के वनोपज एवं औषधीय वनस्पतियों पर भी उन्होंनें लेखन किया है। वर्तमान में वे जंगलों में रहने वाले पारम्परिक वैद व गुनियॉं लोगों से प्राप्त ज्ञान व वैज्ञानिक शोध के उपरांत स्वयं औषधीय वनस्पतियों के द्वारा विभिन्न बीमारियों का अचूक इलाज कर रहे हैं।

क्रमश:

संजीव तिवारी

परिभाषाओं के पुर्नमूल्‍यांकन का समय

छत्तीसगढ राज्य अपना स्थापना सप्ताह मना रहा है। राज्य की राजधानी, जिलों एवम जनपदों मेँ राज्य स्थापना का उल्लास, आयोजनोँ के रुप मेँ नजर आ रही है। ऐसे समय मे राज्य के आदि साहित्यकार पंडित सुंदरलाल शर्मा की स्मृति मे दिये जाने वाले सुंदरलाल सम्मान के संबंध मे एक शुभ सूचना प्राप्त हुई है।

इस वर्ष राज्य सरकार की और से दिया जाने वाला यह सम्मान छत्तीसगढ़ के जाने माने साहित्यकार श्री तेजिंदर गगन जी को दिया जायेगा। यह सम्मान उनके निरंतर साहित्य साधना एवं उनके प्रसिद्द उपन्यास काला पादरी को रेखांकित करते हुए दिया गया है। इस बात की खुशी है कि, सरकार ने तेजिंदर गगन जी के लेखन का सम्मान किया। यद्यपि साहित्य को सीमा विशेष मे बांधा नहीँ जाना चाहिए फिर भी इस सम्मान के पीछे जो उद्देश्य रहा है वह यह कि, सरकार चाहती है कि प्रति वर्ष छत्तीसगढ़ के एक साहित्यकार को सम्मानित किया जाए और उसे दो लाख रुपये का आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जाय।

साहित्य बिरादरी मेँ इस पुरस्कार के चयन के संबंध मेँ पिछले तीन दिनोँ से लगातार काना फूसी चल रही थी। सरकार के द्वारा साहित्य के क्षेत्र में प्रदेश का सरदार, तेजिंदर गगन जी को घोषित किया जा रहा था वहीँ साहित्यिक गलियों में हमारे कुछ वरिष्ठ उन्हें असरदार बता रहे थे।

स्थानीय साहित्यिक बिरादरी में तेजिंदर गगन के चयन पर कुछ दबे जुबान पर तो कुछ स्‍पष्‍ट तौर पर विरोध जता रहे हैं। उनकी अपनी दलीलें हैं जिसमें उनका मानना है कि, तेजिंदर गगन जी छत्तीसगढि़या नहीं हैं। उन्होंने अपना ज्यादातर जीवन छत्तीसगढ से बाहर व्यतीत किया, कभी छत्तीसगढ़ से जुड़े हों ऐसा साबित भी नहीं किया। वैचारिक रुप से समृद्ध माने जाने वाले कुछ साहित्यकारोँ के मुख से, तेजिंदर जी को गैर छत्तीसगढ़िया बताने के पीछे मूल कारण, छत्तीसगढि़या शब्द की निर्धारित परिभाषा है। वर्तमान समय मेँ इस परिभाषा को पुनर्व्याख्यायित करने की आवश्यकता है।

जब जब छत्तीसगढ़िया के रुप मेँ किसी को परिभाषित करने की स्थिति आती है तो इस पर पिछले कई सालों से लोगोँ के द्वारा आवाज उठाया जाता रहा है। इस पर ज्‍यादा विवाद में पड़े मैं समझता हूं कि, छत्तीसगढिया वे सभी हैं जो, छत्तीसगढ़ के निवासी हैं, छत्तीसगढ के हितों के लिए सोचते हैं और उनके दिलोँ मेँ छत्तीसगढ की धारा बहती है। .. और भी बातेँ हो सकती हे जो छत्तीसगढिया होने के आवश्यक शर्तों को सिद्ध करे।

यह सत्‍य है कि, इस पुरस्कार के मूल मेँ छत्तीसगढ आवश्यक है। किंतु हमारे जिन वरिष्‍ठ साथियों को यह लगता है कि, तेजिंदर जी छत्तीसगढिया नहीँ हैं, उनसे मेरा अनुरोध है कि, छत्तीसगढ़िया की परिभाषा का पुर्नमूल्‍यंकन करें। .. बहरहाल मौजा ही मौजा ...

तेजिंदर गगन जी को पंडित सुंदरलाल शर्मा सम्‍मान के लिए मेरी ओर से अनेकानेक शुभकामनाए। जय हिंद ! जय छत्तीसगढ !

संजीव तिवारी

रपट: जमुना प्रसाद कसार स्मृति व्याख्यान एवं पुस्तक विमोचन


दुर्ग के वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं यशश्वी साहित्यकार जमुना प्रसाद कसार एक चिंतक और मानस मर्मज्ञ विचारक थे। उन्होंनें अपने साहित्य में अपने आस पास के परिवेश को लिखा। राम काव्य के उन पहलुओं और पात्रों के संबंध में लिखा, जिसके संबंध में हमें पता तो था, किन्तु जिस तरह से उन्होंनें उनकी नई व्याख्या की उससे उन चरित्रों की गहराईयों से हमारा साक्षात्कार हुआ। किसी रचनाकार के संपूर्ण रचना प्रक्रिया का मूल्यांयकन करना है तो यह देखा जाना चाहिए कि उसने क्याा कहा है। किन्तु एक चिंतक और विचारक की रचनाओं का मूल्यांकन करना है तो यह देखा जाना चाहिए कि, उसने उसे कैसे कहा है। कैसे कहा है इसे जानने के लिए आपको उसे गहराई से पढ़ना होता है। कसार जी की रचनाओं को आप जितनी बार पढ़ते हैं उसमें से नित नये अर्थ का सृजन होता है। कसार जी की पुण्य तिथि 30 अक्टूाबर को दुर्ग में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। प्रस्तुत है उसकी रिपोर्टिंग - 


दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति के द्वारा आयोजित वरिष्ठ साहित्यकार एवम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जमुना प्रसाद कसार जी की पुण्य तिथि पर स्मृति व्याख्यान एवं पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम 30 अक्टूजबर को दुर्ग मे संपन्न हुआ। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रुप मे वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर, अध्यक्ष के रूप में पूर्व चुनाव आयुक्त एवं साहित्यकार डॉ सुशील त्रिवेदी एवं मुख्य वक्ता के रुप मे वरिष्ठ कथाकार डॉ.परदेशीराम वर्मा जी उपस्थित थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता परदेशीराम वर्मा ने जमुना प्रसाद कसार जी के अंतरंग जीवन यात्रा और रचना यात्रा का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया। उन्होंनें स्वतंत्रता संग्राम के समय से अपने जीवन के अंतिम काल तक निरंतर सृजनशील जमुना प्रसाद कसार जी की लेखन जिजीविषा एवं सामाजिक संघर्षों पर प्रमुख रुप से प्रकाश डाला। उन्होंनें कसार जी के स्वनतंत्रता आन्दोलन के काल में किए गए विरोध प्रदर्शनों और सजा का रोचक ढ़ग से उल्लेख किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत तत्कालीन कलेक्टर से अंग्रेजी साहित्य पढ़ने के लिए साग्रह सहायता मागने एवं उसे लौटाने के वाकये का भी उन्‍होंनें कथात्‍मक झंग से उल्लेख किया। 

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रमेश नैयर नें शेरों के माध्यम से कसार जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को रेखांकित किया। अध्यक्षता कर रहे डॉ.सुशील त्रिवेदी ने जमुना प्रसाद कसार जी के जीवन संघर्षों एवं उनके भावी पीढ़ी को दिए गए संस्कारों की प्रसंशा की। जमुना प्रसाद कसार जी की धर्म पत्नी श्रीमती शकुन्‍तला कसार एवं पुत्र अरूण कसार नें जमुना प्रसाद जी के अंतिम दिनों को याद करते हुए रूंधे गले से हिन्‍दी साहित्‍य समिति एवं झॉंपी पत्रिका के साहित्य यात्रा को निरंतर रखने का आहवान किया। 

कार्यक्रम में कसार जी की दो किताबें 'आजादी के सिपाही' का द्वितीय संस्‍करण एवं झाँपी के पद्मश्री अंक का विमोचन हुआ। आजादी के सिपाही में दुर्ग जिले के 65 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कहानियां है एवं झाँपी का अंक छत्तीसगढ़ के 17 पद्मश्री पर केन्द्रित है।

कार्यक्रम का संचालन रवि श्रीवास्तव एवं स्वागत भाषण दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ संजय दानी ने दिया, आभार प्रदर्शन अरूण कसार नें किया। कार्यक्रम मे महावीर अग्रवाल, अशोक सिंघइ, मुकुंद कौशल, गुलबीर सिंह भाटिया, आचार्य महेश चंद्र शर्मा, रघुवीर अग्रवाल पथिक, डा.निर्वाण तिवारी, डी.एन.शर्मा, शरद कोकाश, प्रभा गुप्ता, नीता काम्बोज, प्रदीप वर्मा, डा.नौशाद सिद्धकी, संध्या श्रीवास्तव, तुंगभद्र राठौर, अजहर कुरैशी आदि दुर्ग भिलाई के वरिष्ठ साहित्यकार, चिंतक एवम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उपस्थित थे। 

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छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...