शहंशाह सन्यासी स्वामी विवेकानंद : लोकरंग अरजुंदा


लोकरंग अरजुन्‍दा की प्रस्‍तुति 'शहंशाह सन्यासी स्वामी विवेकानंद' विगत दिनों भिलाई के नेहरू सांस्‍कृतिक सदन में देखने का अवसर मिला। यह नाटक स्‍वामी विवेकानंद के जीवन के उन उल्‍लेखनीय पहलुओं पर आधारित था, जिसके सहारे वे विश्व भर में जाने पहचाने गए। नाटक में विवेकानंद के जीवन के इन्‍हीं पहलुओं को उभारा गया है जिसमें अछूत के हाथों का भोजन ग्रहण करना व युवाओं को राष्ट्र निर्माण का राह दिखाना प्रमुख था। विवेकानंद के सिद्धांतों के अनुसार ईश्वर की आराधना एवं जनता जनार्दन की सेवा व राष्ट्र निर्माण से संबंधित उनके विचारों को 'शहंशाह सन्यासी' में संवेदनशीलता के साथ प्रस्‍तुत किया गया। इस नाटक में स्वामी विवेकानंद के जीवन के प्रमुख घटनाओं को शामिल किया गया है। गीत-संगीत के साथ लाईट एंड साउंड इफेक्ट के शानदार प्रयोग नें नाटक को और प्रभावपूर्ण बना दिया है। 

प्रस्‍तुति के दूसरे दिन विभिन्‍न समाचारों नें संयुक्‍त स्‍वर में इस नाटक की भूरि भूरि प्रशंसा की। समाचारों पत्रों नें लिखा कि, अपने ज्ञान से पूरी दुनिया को चमत्कृत करने वाले स्वामी विवेकानंद पर नाटक बनाना चुनौती भरा है लेकिन इसे बहुत जिम्मेदारी के साथ लोकरंग अरजुन्दा ने निर्वाह किया। वरिष्ठ रंग निर्देशक रामहृदय तिवारी ने बहुत शोधपूर्ण स्क्रिप्ट लिखा। इसके बाद उसका ध्वन्यांकन किया गया। इसके बाद ठेठ देहात के कलाकारों को लेकर लंबी रिहर्सल का दौर चला। यह प्रस्‍तुति केवल उपदेशात्मक नाटक नहीं है वरन यह आत्मगौरव जगाने वाली प्रस्‍तुति है। कई लोगों की प्रतिक्रिया थी कि इस नाटक से ही उन्हें स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन की बारीकियों को समझने का अवसर मिला। नाटक में संगीत दिया था पुराणिक साहू व नृत्य संयोजन सतीश साहू का था। नेपथ्य स्वर थे- सपन भट्टाचार्य, छाया चन्द्राकर, लक्ष्मी नान्द्रे, दीपक हटवार, संजय, घेवर, देवेन्द्र रामटेके आदि के। केन्द्रीय भूमिका में थे सतीश साहू व परमहंस के पात्र को जीवंत किया योगेश देशमुख ने। नाटक का मंचन लोकरंग संस्था के संचालक दीपक चंद्राकर और उनके साथियों ने किया। नाटक में स्वामी जी की भूमिका सतीश साहू तथा रामकृष्ण परमहंस की भूमिका योगेश देशमुख ने निभाई। संगीत व नृत्य का संयोजन पुराणिक-सतीश साहू ने तथा लाईट एंड साउंड का संचालन अजय व सोहन ने किया।

 

वरिष्ठ निर्देशक रामहृदय तिवारी को मानव रत्‍न सम्मान :- मंचन पूर्व वरिष्ठ निर्देशक रामहृदय तिवारी को लोकरंग परिवार की ओर से मानव रत्‍न सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पिछले चार दशकों से हिन्दी रंगमंच के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी लोकमंच के क्षेत्र में उनके निरंतर योगदान व दीर्घ सेवाओं के लिए दिया गया। इस अवसर पर लोकरंग अरजुन्दा के संस्थापक संचालक दीपक चन्द्राकर ने अपनी लोकमंचीय कलायात्रा की सफलता का श्रेय अपने कलागुरु श्री तिवारी को देते हुए उन्हें महागुरु बताया। कार्यक्रम के अध्यक्ष नगपुरा पाश्वर्तीर्थ के प्रमुख रावलमल जैन मणि ने कहा कि आज की प्रस्तुति प्रेरक व प्रभावी होगी। विशिष्ट अतिथि अभ्युदय संस्थान अछोटी के दार्शनिक संत राजन महाराज ने कहा कि श्री तिवारी का सम्मान अभिव्यक्ति की ऊंचाइयों को दिया गया सम्मान है।
(विभिन्‍न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के आधार पर) 

.

.
छत्‍तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉंव में जन्‍म, उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर तक की पढ़ाई गॉंव से सात किलोमीटर दूर सिमगा में, बेमेतरा से 1986 में वाणिज्‍य स्‍नातक एवं दुर्ग से 1988 में वाणिज्‍य स्‍नातकोत्‍तर. प्रबंधन में डिप्‍लोमा एवं विधि स्‍नातक, हिन्‍दी में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई स्‍टील सिटी में निजी क्षेत्रों में रोजगार करते हुए अनायास हुई. अब पेशे से विधिक सलाहकार हूँ. व्‍यक्तित्‍व से ठेठ छत्‍तीसगढि़या, देश-प्रदेश की वर्तमान व्‍यवस्‍था से लगभग असंतुष्‍ट, मंच और माईक से भकुवा जाने में माहिर.

गॉंव में नदी, खेत, बगीचा, गुड़ी और खलिहानों में धमाचौकड़ी के साथ ही खदर के कुरिया में, कंडिल की रौशनी में सारिका और हंस से मेरी मॉं नें साक्षात्‍कार कराया. तब से लेखन के क्षेत्र में जो साहित्‍य के रूप में प्रतिष्ठित है उन हर्फों को पढ़नें में रूचि है. पढ़ते पढ़ते कुछ लिखना भी हो जाता है, गूगल बाबा की किरपा से 2007 से तथाकथित रूप से ब्‍लॉगर हैं जिसे साधने का प्रयास है यह ...